बीकानेर, इरशाद अज़ीज। इमाम हुसैन और उनके फॉलोअर्स की शहादत की याद में मुहर्रम मनाया जाता है। यह कोई त्योहार नहीं बल्कि मातम का दिन है। इमाम हुसैन अल्लाह के रसूल (मैसेंजर) पैगंबर मोहम्मद के नाती थे। यह हिजरी संवत का प्रथम महीना है। मुहर्रम एक महीना है, जिसमें शिया मुस्लिम दस दिन तक इमाम हुसैन की याद में शोक मनाते हैं और कला लिबाश पहनते है ।
बीकानेर के साहित्यकार द्वारा की लिखी ये लाईने … दाउजी मेरे देवता, नौगजा मेरे पीर …..बलवान शाह पे मैं वारी-वारी जाऊं, लिखमीनाथ म्हारो सेठ ……बुध करूं गढ़ गणेश रा दर्शन, जुम्मेरात हालिमा दादी री सीरनी ……पंचमुखा हड़मान जी री करूं मंगला आरती, दो पीर सजदे सीस……नागणेचीजी-रतनबिहारी में झालर बाजे,ईदगाह गूंजे अजाऩ …..दिखणादे खड़ी डोकरी मां करणी,आथूणे जेठा भुट्टा करे सहाय ……अल्ला करे सबका भला,रामापीर धोके जहान …. आज बीकानेर में हिन्दु-मुस्लिम एकता का वर्णन करती है। फोटो छंगाणी
बीकानेर में बकरी ईद की नमाज के ताजियों का निर्माण कार्य शुरू हो जाता है। कुचिलपुरा, न्यारियान मौहल्ला, डिडुसिपाहियान, दमामी मौहल्ला, खटिकान मौहल्ला, माहवतान मौहल्ला, सिक्कों मौहल्ला, रामपुरा बस्ती, सर्वोदय बस्ती, मोहल्ला व्यापारियान् , चूनगरान और भी अनेक जगहों से बीकानेर में ताजियों निकलते है जगह जगह भट्टियों पर कड़ाह चढ़े हुए … जहां पर हलीम व रबील की सौंधी-सौंधी खुश्बू से महक रहा आ रही थी।सूर्य अस्त के बाद शहादत हुई थी इसलिए सांय को ताजियों को चौखुटी स्थित करबला में दफन करने के लिए ले जाया जाता है। फोटो राजेश छंगाणी 9636020046