बीकानेर। बीकानेर नगर स्थापना दिवस के अवसर पर आखाबीज और आखातीज को घर-घर में खीचड़ा बनाया जाएगा। परम्परा के अनुसार एक दिन गेहूं और दूसरे दिन बाजरे का खीचड़ा बनेगा। महिलाएं लगभग एक सप्ताह से इसकी तैयारी में जुटी हैं। ब्रह्म बगीचा क्षेत्र में रहने वाली वयोवृद्ध भंवरी देवी जोशी ने बताया कि तपसी भवन में दशकों से इस परम्परा का निर्वहन हो रहा है। घर की सभी बहुएं मिलकर आज भी हमाम दस्ते में कूट-पीटकर खीचड़ा तेयार करती हैं। वे बाजार में तैयार खीचड़ा खरीदने से परहेज करते हैं।
उन्होंने बताया कि तीज-त्यौहार हमारी परम्पराओं से जुड़े हैं तथा इसमें भी वैज्ञानिक दृष्टिकोण है। हमामदस्ते में कूटकर तैयार किया गया खीचड़ा, मशीनों में पीसे गए खीचड़े की तुलना में अधिक पौष्टिक होता है। उन्होंने बताया कि उनके परिवार में आज भी खीचड़ा लकड़ियां जलाकर चूल्हे पर बनाया जाता है। समाजशास्त्री आशा जोशी ने बताया कि हर वर्ष की भांति रविवार को उनकी सास की देखरेख में खीचड़ा तैयार किया गया। इस अवसर पर पुष्पा, विमला जोशी, संगीता, माधुरी तथा पूजा जोशी मौजूद रहे। उन्होंने बताया कि इक्कीसवीं सदी में परिवार को एक सूत्र में पिरोने में ऐसे मौके अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं। उन्होंने बताया कि आखा बीज के अवसर पर परम्परागत रूप से नई मटकी की पूजा की जाएगी। इस दौरान सरवा भी मिट्टी का होगा तथा छोटे बच्चों के लिए मिट्टी की ‘लोटड़ियां’ खरीदी जाएंगी।