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वर्तमान दौर में बाल साहित्य सृजन एक चुनौती : रंगा

बीकानेर hellobikaner.in वर्तमान दौर में बाल-साहित्य सृजन करना एक चुनौती है क्योंकि बाल साहित्य के माध्यम से हमारी साहित्यिक एवं सांस्कृतिक विरासत को बालकों तक पहुंचाने का सृजनात्मक उपक्रम करना होता है, इसके माध्यम से बालमन की सूक्ष्म संवेदनाओं की अभिव्यक्ति देनी होती है। इस स्तर पर डॉ. चारुलता की पुस्तक ‘राजस्थानी बाल कहाणियां’ खरी उतरती हैं।

 

ये उद्गार केन्द्रीय साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली से पुरस्कृत वरिष्ठ साहित्यकार लक्ष्मीनारायण रंगा ने शुक्रवार प्रात: 11 बजे मुरलीधर व्यास कॉलोनी स्थित ‘सुकमलायतन’ रंगा कोठी में डॉ. चारुलता की राजस्थानी भाषा की पहली पुस्तक ‘राजस्थानी बाल कहाणियां’ के लोकार्पण अवसर पर कहे। रंगा ने आगे कहा कि डॉ. चारुलता की कहानियां बच्चों की रचनाशीलता को निखारने और उन्हें नया सोचने के साथ अपने सोच को अभिव्यक्ति देने का अवसर देगी।

लोकार्पित कृति की रचनाकार डॉ. चारुलता ने इस अवसर कहा कि मातृभाषा राजस्थानी में सृजन करना एक सुखद अनुभव है। कहानी विधा सशक्त विधा है, इसके माध्यम से बालमन की बात को सही ढंग से अभिव्यक्ति दी जा सकती है।

लोकार्पित कृति पर अपने ई-विचार रखते हुए केन्द्रीय साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली से बाल साहित्य में पुरस्कृत नागौर-डेह के पवन पहाडिय़ा ने कहा कि राजस्थानी बाल साहित्य में युवा रचनाकार आगे आ रहे हैं। इसी कड़ी में डॉ. चारुलता की कहानी विधा की कृति की कहानियां बालकों में शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, नैतिक एवं चारित्रिक विकास करने का उपक्रम करेगी। इन कहानियों के माध्यम से कथा-पात्रों के जीवन से बालकों का सोच विकसित होगा।

 

पटियाला की वरिष्ठ बाल साहित्यकार सुकीर्ति भटनागर ने कहा कि डॉ. चारुलता की कहानियां वैज्ञानिका दृष्टिकोण एवं विषय की गंभीरता के साथ-साथ रोचकता-मनोरंजकता भी बाल पाठकों में उत्पन्न करेगी। सोजत-सिटी के वरिष्ठ बाल साहित्यकार अब्दुल समद राही ने कहा कि कोई भी रचना बाल साहित्य की श्रेणी में तभी आ सकती है जब बच्चों के जीवन से जुड़े अनुभवों, उनके द्वन्द्व एवं उनकी कल्पनाओं आदि को ध्यान में रखा गया हो। डॉ. चारुलता की कहानियां इस दृष्टिकोण से सफल हैं।

 

लोकार्पित कृति पर अपने विचार रखते हुए कानपुर की प्रोफेसर माहे तिलत सिद्दीकी ने कहा कि बाल साहित्य बालकों से सीधा संवाद स्थापित करने की विधा है। आज इस बात के महत्त्व की जरूरत व प्रासंगिकता और अधिक हो गई है। इस संदर्भ में डॉ. चारुलता की कहानियां एक अच्छी पहल है। राजसमंद के वरिष्ठ साहित्यकार किशन कबीरा ने अपने विचार रखते हुए कहा कि बाल साहित्य के माध्यम से बच्चों में भावनात्मक बुद्धिमत्ता का विकास होता है, साथ ही खासतौर से कहानी विधा के माध्यम से उसके पात्रों संग बाल पाठक जुड़कर अपने सोच को नई अभिव्यक्ति देता है। डॉ. चारुलता की पुस्तक की भाषा पात्रानुकूल है।

कार्यक्रम का संचालन इंजी. आशीष रंगा व इंजी. सुमित रंगा ने किया। अंत में सभी का आभार प्रज्ञालय संस्था के हरिनारायण आचार्य ने ज्ञापित किया।

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