बीकानेर(हैलो बीकानेर)। प्रेम और सोहार्द का प्रतीक होली पर्व पर बीकानेर की होली कई मायनों में अपना अलग महत्व रखती है। खेल सप्तमी से शुरू होने वाले होली के उत्सव को यह मस्तमौला शहर जी भर कर जीता है। शहर के भीतरी हिस्से में होली से पहले आयोजित होने वाला हर्षो और व्यासो के चौक की डोलची मार होली तो प्रेम व सोहार्द की अद्भुत मिसाल है जो सदियों पहले दोनों जातियों के बीच हुए खूनी संघर्ष के बाद आपसी पंचायत व राज घराने की मध्यस्तता हुए समझौते के बाद से ही खेली जाती है।
बीकानेर के पुष्करणा समाज में हर्ष और व्यास जाति के लोग डोलची मार होली के माध्यम से बरसों पुरानी परम्परा आज भी निभाते आ रहे हैं। चमड़े की बनी डोलची में पानी भर एक दूसरे के शरीर पर मारते हैं। पानी की तीखी मार के बाद भी इन जातियों के लोगों के चेहरों से खुशी व प्रेम ही झलकता रहता है। हर्ष जाती के रामकुमार हर्ष ने बताया की दोनों जातियों के बीच डोलची मार का यह खेल उस वक्त से चला आ रहा है जब इन दोनों जातियों में प्रेम की जगह एक दूसरे के प्रति द्वेष भावना थी।
हाथों में डोलचियां, पानी से भरे बड़े कड़ाव और इन कड़ाव से पानी लेकर कर एक दूसरे की पीठ पर वार करते हर्ष-व्यास जाति के लोग। यह नजारा है सदियों पुरानी स्नेह परंपरा को निभाने का। व्यास और हर्ष एक दूसरे की पीठ पर वार करते और सटाक… की आवाज के साथ ही क्या बात है का जुमला गूंज उठता है। इतना ही नहीं अपनी-अपनी जाति का समर्थन करने वाले हूटिंग के जरिये हौसला अफजाई भी करते हैं। खेल के लिए अल सुबह ही कड़ाव हर्षों के चौक में रख दिए जाते हैं। सूरज-निकलते ही सभी कड़ाई और टंकियां पानी से भर दी जाती है।
खेल का रोमांच इतना होता है कि हर आयु वर्ग के लोग पानी की जंग में शरीक होते हैं। व्यासों के चौक से लेकर मूंधड़ा चौक, बर्षों का चौक मोहता चौक, रत्ताणी व्यासों की घाटी तक मेला लगता है। हर्षों-व्यासों की यह पानी की जंग देखने बड़ी संख्या में महिलाएं भी छतों पर पहुंचती हैं। दो घंटे की जंग के बाद जब हर्ष जाति के लोगों की ओर से व्यास जाति की इजाजत से गुलाल उछाली जाती हैं तो इसी के साथ ही एक दूसरी जाति के लिए शुरू हो जाता है गीतों का दौर।दोनों जातियों के बड़े-बुजुर्ग एक दूसरे को हाथ जोड़कर अगले वर्ष फिर इसी तिथि पर खेलने का कह कर विदाई लेते हैं।
380 साल पुरानी है डोलची मार खेल की परंपरा
पुष्करणा समाज की हर्ष और व्यास जाति के बीच खेले जाने वाले डोलची मार खेल की परंपरा 328 सालों से निभाई जा रही है। बनवाली हर्ष परिवार इस खेल को शुरू करता है तो माथुर समाज के लोग गुलाल उड़ाकर इस खेल के पूरा होने की घोषणा करता है। पुष्करणा समाज की हर्ष और व्यास जाति के बीच खेले जाने वाले डोलची मार खेल की परंपरा 328 सालों से निभाई जा रही है। बनवाली हर्ष परिवार इस खेल को शुरू करता है तो माथुर समाज के लोग गुलाल उड़ाकर इस खेल के पूरा होने की घोषणा करता है। यह खेल होली के आयोजन में मुख्य आकर्षण होता है। इसको देखने के लिए सैकड़ों की तादाद में लोग जुटते हैं। साभार : बीकानेर प्राइड