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बीकानेर। बीकानेर शहर अपनी कला एवं संस्कृति के रूप में दुनियाभर में अपनी अलग ही पहचान रखता है। आज हम जो लिखना चाह रहे है वो यह है कि आज होली के नाम पर जो हमें संस्कृति मिली है उसको कैसे बचाया जाए?

आज के इस डिजिटल दौर में हमें अपनी संस्कृति को भी बचाना है, लेकिन कैसे? ये सवाल आज मेरे मन मे आ खड़ा हुआ, क्योंकि जब होली की रम्मतों, गेवर ओर भी सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं तो उनमें उतने लोगों का उतना हुजूम देखने को नहीं मिलता जितना बीते वर्षों में देखने को मिलता था।
इसका सबसे अहम कारण “डिजिटल पाटेबाजी” बन गई है। हर कोई अपनी डिजिटल लाइफ में व्यस्त नजर आते हैं, यही नहीं, संस्कृति बचाने को तो दूर, इसी संस्कृति पर भरपूर कटाक्ष भी करते हैं।
मेरा मानना है कि अगर आप बीकानेर की संस्कृति को देख रहे हैं तो यकीन मानिए आप उस स्वर्ग में जी रहे हैं, जहाँ के लोगों का अलहदा अंदाज हर किसी को सहज ही अपनी ओर खींच लेता है।
दीपक व्यास(ये लेखक के अपने निजी विचार हैं।)

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