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हैलो बीकानेर, श्रीगंगानगर । साहित्य अकादेमी बाल साहित्य पुरस्कार से सम्मानित साहित्यकार हरीश बी. शर्मा ने कहा है कि नाटक लिखना तभी सफल होता है, जब वह मंचित हो जाए। बिना मंचन नाटक का उद्देश्य सफल नहीं होता। वे रविवार को यहाँ सृजन सेवा संस्थान की ओर से तनिष्क के सभागार में आयोजित “लेखक से मिलिए” कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि वे इस मामले में खुशनसीब रहे कि उनके लगभग सभी नाटक मंचित हुए हैं। कार्यक्रम में हरीश ने अपनी हिंदी व राजस्थानी कविताओं से समां बांधा। उन्होंने कहा-मेरा सब अर्पण है तुझको, तू भी तो समझौता कर, जीत नहीं सकता मैं जीवन, हार न जाऊं ऐसा कर।
उनकी राजस्थानी कविता भी प्रभावित करने वाली थी-पण जिद ही थारी क/नीं खरै कदै आखर//अर/चढ़ायम्हारी निजरां रै परवाण/देय’र अरपण-समरपण रा सै भेद/थूं हुई मुगत।
हरीश ने अपने उपन्यास “श्रुति शर्मा कालिंग” और राजस्थानी नाटक “सुपनां में नीं सीर” का एक-एक अंश भी सुनाया। उनकी राजस्थानी कहानी “परवा” तथा हिंदी लघुकथाएं “दर्द” और “टीआरपी” भी सराही गई।
कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी डा. श्यामलाल कुक्कड़ थे। अध्यक्षता समाजसेवी विजयकुमार गोयल ने की। संचालन करते हुए सृजन के अध्यक्ष कृष्ण कुमार आशु ने हरीश का परिचय दिया। अरुण हैरिया ताइर ने आभार जताया। इस मौके पर हरीश बी शर्मा को शाल ओढ़ाकर, सम्मान प्रतीक व साहित्य भेंट कर सृजन साहित्य सम्मान प्रदान किया गया।

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