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बीकानेर hellobikaner.in शहर के कई रसाेईघरों में शुक्रवार अष्टमी को अवकाश रहेगा। बच्चों को चर्म संबंधी बीमारियों से संरक्षण की मनौति से जुड़ा शीतलाष्टमी पूजन होगा। घरों में शीतला माता, ओरी माता, अचपड़ाजी एवं पंथवारी माता का प्रतीक बनाकर पूजन किया जायेगा।

पूजन के दौरान एक दिन पूर्व घरों में बनाए गए पकवानों का भोग लगाकर घर के सभी बतौर प्रसादी ठंडा ग्रहण करने की परम्परा है। अधिकांश घरों में शीतलाष्टमी को चूल्हा नहीं जलाता। यहां तक दूध व चाय भी नहीं पी जाती।

शीतला अष्टमी के एक दिन पूर्व गुरुवार को घरों में अलग-अलग व्यंजन बनाए जाएंगे। खासतौर पर करबा, राब, पंचकूटे की सब्जी, मठरी, दहीबड़े, कांजी- बड़े , मीठी नमकीन पुड़ियां आदि व्यंजनों को मां शीतला, ओरीमाता, अचपड़ाजी एवं पंथवारी माता पूजन एवं भोग के बाद शुक्रवार को बतौर प्रसादी के रूप में ग्रहण की जाएगी। उल्लेखनीय है इस दिन जोधपुर सहित मारवाड़ के अधिकांश घरों में चाय तक का सेवन नहीं किया जाता है।

होली के बाद मां दुर्गा के ही एक रूप शीतला माता की पूजापाठ से जुड़ा यह त्‍योहार काफी महत्‍वपूर्ण माना जाता है। बच्‍चों को बीमारियों से दूर रखने के लिए और उनकी खुशहाली के लिए इस त्‍योहार को मनाने की परंपरा बरसों से चली आ रही है। कुछ स्‍थानों पर शीतला अष्‍टमी को बासौड़ा भी कहा जाता है। इस दिन माता शीतला की बासी भोजन का भोग लगाने की परंपरा है और स्‍वयं भी प्रसाद के रूप में बासी भोजन ही करना होता है। इस वर्ष शीतलाष्‍टमी 25 मार्च, शुक्रवार को पड़ रही है।

शीतलाष्‍टमी का महत्‍व : इस दिन मां दुर्गा का ही स्‍वरूप मानी जाने वाली माता शीतला की विधि-विधान से पूजा होती है। कुछ माताएं बच्‍चों की दीर्घायु और उन्‍हें रोगमुक्‍त रखने के लिए इस दिन व्रत भी रखती हैं। स्‍कंद पुराण में शीतला माता को चेचक, खसरा और हैजा जैसी संक्रामक बीमारियों से बचाने वाली देवी के रूप में माना गया है। कहते हैं कि इस दिन बासी भोजन का भोग लगाने और उसे अपने बच्‍चों के ऊपर से उतारकर काले कुत्‍ते को खिलाने से बच्‍चे इन मौसमी बीमारियों से दूर रहते हैं।

उत्‍तर भारत में इसे कहते हैं बासौड़ा : पश्चिमी उत्‍तर प्रदेश और राजस्‍थान व मध्‍य प्रदेश के कुछ समुदाय के लोग इस त्‍योहार को बासौड़ा कहते हैं। जो कि बासी भोजन के नाम से लिया गया है। इस त्‍योहार को मनाने के लिए लोग सप्‍तमी की रात को बासी भोजन तैयार कर लेते हैं और अगले दिन देवी को भोग लगाने के बाद ही स्‍वयं ग्रहण करते हैं। कहीं पर हलवा पूरी का भोग तैयार किया जाता है तो कुछ स्‍थानों पर गुलगुले बनाए जाते हैं। कुछ स्‍थानों पर गन्‍ने के रस की बनी खीर का भोग भी शीतला माता को लगाया जाता है। इस खीर को भी सप्‍तमी की रात को ही बना लिया जाता है।

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