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बीकानेर hellobikaner.in उर्दू, अदब के ख्यातिप्राप्त शायर मरहूम रफ़ीक़ अहमद ‘रफ़ीक़’ की 21वीं पुण्यतिथि आज प्रज्ञालय संस्थान द्वारा उन्हें स्मरण नमन करते हुए श्रृद्धापूर्वक मनाई गई। उर्दू अदब के नामचीन शायर रफीक अहमद ’रफ़ीक़’ को स्मरण नमन करते हुए साहित्यानुरागी नंदकिशोर सोलंकी ने कहा कि आपका ग़ज़ल संग्रह ’हर्फे-हुनर’ काफी चर्चित है। आप मानवीय चेतना की सच्चे पैरोकार थे।

 

प्रारंभ में उनके व्यक्तित्व और कृतित्तव पर बोलते हुए उनके पुत्र जो उनकी साहित्यिक विरासत को संभालते हुए है शायर जाक़िर अदीब ने उनके जीवन से जुड़े हुए कई अनछुए पहलू साझा करते हुए कहा कि रफीक अहमद ’रफ़ीक़’ को साहित्यिक सेवाओं हेतु राजस्थान उर्दू अकादमी से ’खुसूसी अवार्ड’ से नवाजा था। ज़ाक़िर अदीब ने उनके कई बेहतरीन शेर भी सुनाए जिनमें लुट गया कारवां तो लुटने को/ये बता क्यों है राहबर ख़ामोश, वो पत्थर भी खाकर समर छोड़ता है/कहां अपनी फितरत शजर छोड़ता है।

 

 

 

शब्दांजलि अर्पित करते हुए राजस्थानी के साहित्यकार कमल रंगा ने कहा कि रफीक अहमद ‘रफ़ीक़’ की शायरी एवं मानवीय पीड़ा और सामाजिक सरोकारों की सच्ची पड़ताल है, उनकी शायरी में जीवन की विभिन्न स्थितियां-परिस्थितियों का यथार्थ एक अलग अंदाज से व्यक्त हुआ है।

 

 

शायर बुनियाद हुसैन जहीन ने कहा कि रफीक साहब उर्दू अदब के बेहतरीन शायर, कुशल आयोजक एवं नेक इंसान थे। शायर क़ासि़म बीकानेर ने कहा कि उनकी शायरी का स्वर विद्रोह का था और वह एक समर्पित जन प्रतिनिधि भी रहे।
युवा कथाकार पुखराज सोलंकी ने कहा कि उनकी शायरी कुव्यवस्था और विडंबनाओं पर गहरी चोट करती है। कवि गिरिराज पारीक ने उन्हें मजदूर का सच्चा पैरोकार बताया।

 

बाल साहित्यकार अब्दूल समद राही ने कहा कि उनकी शायरी शोषित वर्ग की पीड़ा को स्वर देती है। वहीं युवा शायर माजीद खां गौरी ने कहा कि रफीक साहब की उर्दू अदब की सेवाओं से नई पीढ़ी को प्रेरणा लेनी चाहिए। अपनी शब्दांजलि अर्पित करते हुए राजेश रंगा, हरिनारायण आचार्य, शिवाजी आहूजा, संतोष शर्मा उन्हें स्मरण करते हुए उनके साहित्यक योगदान को नमन किया।

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