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बीकानेर स्थापना दिवस पर विशेष (बीकानेर-एक अनुभूति और विचार) 

531 साल के इतिहास को आगोश में समेटे बीकानेर यहां के वाशिन्दों की जिन्दादिली, साम्प्रदायिक प्रेम, सौहार्द और सद्भावना की अनूठी मिसाल है। समृद्ध कला एवं संस्कृति की अक्षुण्ण परम्परा और मेहमान नवाजी, खान-पान के स्वादिष्ट व्यंजनों और आर्थिक संसाधनों के भण्डार के लिए समूचे हिन्दुस्तान ही नहीं विश्व भर में अपनी अलग पहचान रखने वाला बीकानेर आधुनिकता को अपनाने के साथ-साथ अपनी जड़ों को बचाए रखने में भी सफल रहा है। यहां की लोक कला व संस्कृति की झलक देखने लाखों देशी-विदेशी पर्यटक प्रतिवर्ष बीकानेर पहुंचते हैं। हवेलियां और किलों की स्थापत्य कला हो, धार्मिक स्थलों के प्रति श्रद्धालुओं के आकर्षण, बीकानेर पर्यटकों को अपनी ओर बरबस ही खींचता है।
सामाजिक वातावरण, आपसी सौहार्द और मेहमानवाजी के कारण बीकानेर में जो भी आता है, यहीं का होकर रह जाता है। दुलमेरा के लाल पत्थरों व स्थापत्य कला के बेजोड़ नमूनों वाले यहां के भव्य राजप्रासाद और हजार हवेलियों के शहर बीकानेर की इसी खूबी के चलते प्रतिवर्ष यहां आयोजित होने वाले उंट उत्सव को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति मिली। बीकानेर आज रेल, हवाई व बस सेवाओं से देश-दुनिया से जुड़ा है। बीकानेर से होकर राष्ट्रीय राजमार्ग 15, 11 तथा 89 गुजरते हैं। दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता चेन्नई सहित देश के बड़े महानगरों से यह सीधा रेल लाइन से जुड़ा है। साथ ही जयपुर और नई दिल्ली से सीधा हवाई मार्ग से भी जुड़ा है।
531 साल पहले पड़ी नींव
स्वर्णिम रेतीले धोरों के बीच विक्रम संवत 1545 में अक्षया द्वितीया (ईस्वी 13 अप्रेल 1488) के दिन जोधपुर के राव जोधा के पुत्र राव बीका ने बीकानेर नगर की नींव रखी। बीकानेर की स्थापना से जुड़ा स्थानीय भाषा में एक दोहा भी प्रचलित है ’’ पनरे से पैतालवे, सुद वैशाख सुमेर। थावर बीज थरपियों, बीके बीकानेर’’। प्राचीन समय में जांगल प्रदेश के रूप में विख्यात रहे बीकानेर के पश्चिमी क्षेत्र कोलायत में सरस्वती नदी का प्रवाह स्थल माना जाता था, जो कालांतर में विलुप्त हो गई । इस नदी के पुराशेष खुदाई के दौरान मिलते हंै। रियासतकाल में बीकानेर पर अनेक राजाओं ने शासन किया। आजादी के बाद यहां के शासके सार्दुल सिंह के समय बीकानेर का विलय राजस्थान में हो गया।
समृद्ध कला, साहित्य व संस्कृति
देश के विख्यात पत्रकार स्वर्गीय प्रभाष जोशी ने अपनी बीकानेर यात्राओं के दौरान अनेकों बार कहा कि हिन्दुस्तान में बीकानेर और बनारस ऐसे शहर हंै, जहां की कला व संस्कृति आज भी जिन्दा है। चाहे रहन-सहन, खान-पान की सांस्कृतिक परम्परा हो या कलाएं। बीकानेर समृद्ध विरासत की बानगी है।

बीकानेर स्थापना दिवस पर अक्षया द्वितीया व तृतीया का पर्व तो साम्प्रदायिक सौहार्द का सटीक संदेश देता है। हिन्दू, मुस्लिम, सिख व ईसाई मजहबों के लोग एक साथ मिलकर पतंगबाजी करते हैं, घरों में इमली का पना (इमलानी) गेहूं, बाजरी, मूंग व मोठ का खीचड़ा, चार फोल्ड के फुल्के (रोटियां) और हरी पत्तियों की चंदलिए की सब्जी बनाकर बड़े चाव से खाते हैं। प्रचलित पारम्परिक लोक गीतों को सर्वधर्म महिलाएं इस मांगलिक अवसर पर गाकर नगर की सौहार्द और समृद्ध परम्पराओं को पुष्ट करती हंै।
बीकानेर की लघु चित्रकला व ऊंट की खाल पर सुनहरी चित्रकारी शैली का भी कोई सानी नहीं है। चित्रकला की इन शैलियों को सीखने के लिए जापान, अमेरिका सहित विश्व के अनेक देशों से कला विद्यार्थी आते हैं। मुस्लिम उस्ता कलाकारों द्वारा ऊंट की खाल पर उकेरे जाने वाली सुनहरी कलम की कारीगरी मंदिरों, मस्जिदों, शहर की हवेलियों, जूनागढ़ किले, लालगढ़ व गजनेर पैलेस सहित विभिन्न स्थानों को एक अलग खूबसूरती के साथ प्रस्तुत करती है। मुस्लिम चूनगरों की आलागीला पर चित्रकारी, मथैरण कलाकारों की भिति चित्रकारी व गणगौर की प्रतिमाओं पर चित्रांकन देखते ही बनता हैं। बीकानेर की स्वर्णकारी कला भी लोकप्रिय है। यहां के कलात्मक कुंदन मीना, जड़ाई के आभूषण विश्व के अनेक देशों में इस मरू नगर का नाम रोशन कर रहे हैं।
बीकानेर स्थापत्य, चित्र शैलियों के साथ साहित्यक रूप से समृद्ध शहर है। पृथ्वीराज राठौड़ द्वारा रचित ’’वेलि कृष्ण रुक्मणी री’’ राजस्थानी साहित्य का सिरमौर है। अनूप विवेक, काम प्रबोध, संगीत अनूपांकुश, अनूप संगीत विलास जैसे ग्रंथ यहां लिखे गए साहित्यिक ग्रंथ हैं। बीकानेर में साहित्य की अभिवृद्धि में जैन विद्वानों, चारणों व भाटों का भी विशेष योगदान रहा है। इन्हीं साहित्यिक परम्पराओं के फलस्वरूप आज भी बीकानेर के अभय जैन ग्रंथालय, बड़ा उपासरा, राजस्थान राज्य अभिलेखागार, गंगा  गोल्डन म्यूजियम, अनूप लाइब्रेरी आदि में साहित्य का खजाना विद्यमान है। आधुनिककाल में भी बीकानेर के साहित्यकारों ने अपनी साहित्यिक परम्पराओं को आगे बढ़या है और बीकानेर का नाम रोशन किया है।  संगीत के क्षेत्र में भी रियासतकाल से आज तक दमामी व अन्य जाति व समुदाय के कलाकारों ने इस शहर की विशिष्टता को कायम रखा है। पद्मश्री अल्लाह जिलाई बाई ने राजस्थानी माड गायकी को लंदन के अल्बर्ट हाॅल तक में गूंजायमान कर शहर की शौहरत को बढ़ाया। युवा पीढ़ी के अनेक कलाकार भी संगीत की समृद्ध परम्पराओं को अपनी सिद्धहस्त गायकी से आगे बढ़ा रहे हैं।

हवेलियों, किलों, मंदिरालयों और देवालयों का शहर
बीकानेर के पुरा वैभव व दर्शनीय स्थलों का कोई सानी नहीं हैं। हजार हवेलियों के शहर के रूप में विख्यात इस शहर में सैंकड़ों मंदिर और देवालय है। चिंतामणि जैन मंदिर, भांडाशाह जैन मंदिर, लक्ष्मीनाथ मंदिर, देवी नागणेचीजी मंदिर धार्मिक परम्पराओं के साक्षी है तो रामपुरिया की हवेलियां, जूनागढ़ किला, लालगढ़ पैलेस, गजनेर पैलेस, लक्ष्मी निवास देवीकुण्ड सागर,यहां रियासतकालीन वैभव के प्रतीक है।  वहीं हेरिटैज वाॅक नए पर्यटन इवेंट के रूप में प्रचलित हुआ है।
बीकानेर की पावन भूमि ने सैंकड़ों संत-महात्मा भी दिए, जिनके बताए मार्ग पर चल कर समाज ने मानवीय मूल्यों को सहजने और मानवता की सेवा की दिशा में कार्य किए। सांख्य दर्शन के प्रणेता कपिल मुनि की तपोभूमि कोलायत और पवित्र सरोवर, चूहों की देवी के रूप में विश्व विख्यात श्री करणी माता मंदिर, बिश्नोई सम्प्रदाय के प्रवर्तक गुरू जम्भेश्वर का समाधि स्थल और अणुव्रत के प्रवर्तक जैन मुनि आचार्य तुलसी की बीकानेर स्थित समाधि शक्ति स्थल आम लोगों की आस्था के प्रमुख केन्द्र है।

बढ़ी नगर की सीमा और जनसंख्या 
 प्राचीन शहर परकोटे के अंदर बसा है, शहर में लाल पत्थर की हवेलियां, पाटे, जैन व सनातन धर्म के देवालय स्थापत्य कला के बेजोड़ नमूने है। बीकानेर रियासत के राजाओं ने शहर की रक्षा के लिए परकोटा बनवाया था। परकोटे में पांच दरवाजे व आठ बारियां हंै। शहर की बढ़ती आबादी के मद्देनजर आने जाने के लिए स्वरूप में बदलाव करते हुए कुछ दरवाजों के दोनों और दो-दो दरवाजे और बना दिए गए। शहर के हृदय स्थल पर लाल पत्थर से निर्मित कोटगेट के तीन दरवाजों का स्वरूप ज्यों का त्यों है। समय के साथ-साथ शहर की आबादी बढ़ी और इसके चलते बाहरी इलाकों में अनेक नई काॅलोनियां बस गई। इन काॅलोनियों में शहर के लोगों की बसावट से शहर की समृद्ध परम्पराएं बाहरी इलाकों में भी प्रतिष्ठित हुई हैं। शहर के आस पास के उप नगरों गंगाशहर, भीनासर, करमीसर को नगर निगम के क्षेत्र में मिलाने से शहर का क्षेत्रफल चैगुना हो गया।
शिक्षा और चिकित्सा हब के रूप में विकसित होता बीकानेर
 वर्तमान में बीकानेर शहर तेजी से शिक्षा व चिकित्सा के हब के रूप में विकसित हो रहा है। संभाग के सबसे बड़े पीबीएम अस्पताल में विभिन्न चिकित्सा सुविधाओं की उपलब्धता के बाद अब यहां सुपर स्पेशिलिटी ब्लाॅक बनाया गया है, जो शीघ्र ही काम करना शुरू करेगा। आधुनिकतम तकनीकी सेवाओं की उपलब्धता व अनुसंधान केन्द्रों के रूप में भी बीकानेर ने अपनी अलग पहचान बनाई है। कृषि, चिकित्सा, पशु चिकित्सा तकनीकी और मानविकी विषयों में उच्च शिक्षा एवं अनुसंधान के नए केन्द्र के रूप में उभरा है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के केन्द्रीय शुष्क बागवानी संस्थान, राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र, केन्द्रीय अश्व अनुसंधान केन्द्र तथा केन्द्रीय भेड़ और उन अनुसंधान संस्थान ने  अनुसंधान के क्षेत्र में नई उपलब्धियां हासिल की है तथा शौधार्थियों के लिए नए द्वार खोले हैं।

आर्थिक विकास की नई संभावनाओं में बीकानेर
ऐतिहासिक धरोहर के साथ-साथ बीकानेर के आर्थिक परिदृश्य ने भी देशभर में अलग पहचान बनाई है। यहां बने पापड़ व भुजिया, रसगुल्ला का स्वाद सुदूर देशों तक पहुंचता है तो पान, सुपारी भी बेजोड़ है। सौर उर्जा, होलसेल व्यावसायिक गतिविधियां, एग्रो प्रोसेसिंग यूनिट्स, पर्यटन आर्थिक संभावनाओं के नए क्षेत्र है। यहां की जमीन मंे लिग्नाइट कोयला, जिप्सम के भंडार समाए है, तो कोलायत क्षेत्र सिलिका सेंड, बाॅल क्ले, बजरी, और चूना पत्थर पोटाश, दुलमेरा पत्थर सेंड स्टोन के मुख्य एक्पोर्ट सेंटर के रूप में विकसित हो रहा है। रानी बाजार, बीछवाल, करणी, खारा मुख्य औद्योगिक केन्द्रों के रूप में विकसित हो रहे हैं। सफेद मिट्टी चाइना क्ले की मांग देश भर के कल-कारखानों में है। बीकानेर में बने ऊनी गलीचे, कंबल, शाॅल और सूती कपड़े और रंगाई भी देश भर में प्रसिद्ध है। बुनियादी ढांचे के विकास के साथ-साथ बीकानेर का आर्थिक ढांचा भी मजबूत हो रहा है। यहां उपलब्ध लैंड बैंक ने कई नए उद्योगों के विकास की संभावनाओं को मजबूत किया है। जिला प्रशासन विभिन्न योजनाओं को लागू कर यहां के स्थानीय और युवा उद्यमियों के लिए इन उद्योगों के विकास के लिए प्रयत्नशील है।बीकानेर संभाग मुख्यालय के साथ वर्तमान में प्रदेश का पांचवां बड़ा जिला है। जिला प्रशासन बीकानेर की प्रगति और यहां के निवासियों के जनकल्याण में तत्परता से जुटा हुआ है।

आधुनिकता और परम्पराओं के समागम के रूप में यह शहर धीरे-धीरे प्रगति के पथ पर अग्रसर है। अत्यधिक गर्मी व सर्दी के मौसम में रहने वाले इस शहर के लोगों में एक अलग ही तरह की जीवंतता, धैर्य, सादगी व सौहार्द है। शहर की विशिष्टताओं व इसके वैभव को बनाए रखना हर बीकानेरवासी का नैतिक दायित्व व कर्तव्य है। विकास में आमजन की सहभागिता ही किसी शहर की असली पूंजी है। स्थापना दिवस प्रत्येक शहरवासी के लिए बीकानेर के विकास में योगदान का संकल्प लेने का दिन है। बीकानेर वासियों को स्थापना दिवस की बधाई व हार्दिक शुभकामनाएं।

कुमार पाल गौैतम, जिला कलक्टर, बीकानेर

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