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गांव और तूलिका का अदभूत संयोग,

बीकानेर (हैलो बीकानेर )। कहते है ना जब कलाकार तूलिका हाथ में लेता है, तो उसके कैनवाश बोनले लगते हैं। चित्रकला एक अपढ़ व्यक्ति की भी भाषा है। वह अपनी ब्रश के माध्यम से सूक्ष्म से सूक्ष्म भावों को अभिव्यक्त कर देता है। आज दिनांक 30-1-18 को यही कुछ देखने को मिला श्री डूंगर महाविद्यालय के चित्रकला विभाग द्वारा आयोजित तीन दिवसीय प्रदर्शनी को देखने पर पता चला कि इन भावी चित्रकारों ने अपना सब कुछ इन चित्रों के माध्यम से व्यक्त किया है। प्रत्येक चित्र अभीभूत करने वाला है। इन चित्रकारों ने समाज की बुराई को खत्म करने के उद्देश्य से फलक पर अपने दायित्च का बोध भी करवाया है। चाहे वह, श्रीकृष्ण का चित्र, नशा मनुष्य के लिए घातक है। या  अम्बिका मंडा का, अर्जुन प्रजापति की मूर्ति का पोट्रेट रूप देना हो या वीरेन्द्र स्वामी का शेल्फ पोट्रेट, शायद शेल्फि युग की याद दिलाता है।

इसी प्रकार इतिश्री का जल ही जीवन जयश्री भाटी का लैंडस्कैप, अंकित चौधरी का पोट्रेट और घोडे, बलवीर शर्मा का शुकरात की मृत्यु। कविता पाल मेघ का आंखे, बरबस की हमारी आंखें भी इनके चित्र की तरफ खिंची चली जाती है। इनके अलावा आशीष पुरोहित, अंकिता की रॉक आर्ट, टाइल पेंटिंग जयश्री चौधरी रैडरिंग, शोम्या आदि  के चित्र दर्शकों को अनायास ही अपनी और आकर्षित कर लेते है। इनका अमर संदेश इन्ह चित्रों के माध्यम से दिया गया है। इन्हे देखकर ऐसा लगता है कि डां इन्द्रसिंह राज पुरोहित, डॉ नरेन्द्र कुमावत, डॉ सुरेन्द्र पाल मेघ और डॉ शतीष गुप्ता आदिने छात्रों पर बहुत मेहनत की है। इस अवसर पर अनिकेत कच्छावा और शंकर राय आदि ने भी इन चित्रों की उन्मुक्त कंठ से प्रशंसा की । नगेन्द्र किराडू  (चित्रकार)

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