हैलो बीकानेर न्यूज़। एन आर असवाल चैरिटेबल संस्था की ओर से सोमवार को वरदान हॉस्पीटल एवं रिसर्च सेंटर में विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पर प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की गई। प्रेस कॉन्फ्रेंस में मानसिक रोगों, कारण, लक्ष्णों, उपचार आदि की जानकारी दी गई। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में उपनिदेशक सूचना एवं जनसम्पर्क विकास हर्ष ने कहा कि मनोरोगों के प्रति समाज में दुराग्रह अधिक है। इनके प्रति चेतना और समय पर इनका उपचार सबसे महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि वर्तमान डिजिटल युग में मानव का जीवन और एकाकी हो गया है। इस कारण यह समस्या बढ़ रही है।
कॉन्फ्रेंस में मनोरोग विशेषज्ञ डॉ सिद्धार्थ असवाल ने कहा कि वर्तमान जीवन शैली में मानव ने प्रगति की ओर कई कदम बढ़ा लिये है। परन्तु कई वस्तुओं एवं परिस्थितियों के प्रति व्यक्ति के दृष्टिकोण एवं अभिवृति में सकारात्मक परिवर्तन आना अभी शेष है। मनोरोग का इतिहास मानव सभ्यता की तरह ही प्राचीन है समय-समय पर प्रचलित धारणाओं के अनुरूप मनोरोग के विषय में व्यक्ति की समझ विपरिर्तित होती गई। कभी मनोरोग को देवी-देवताओं का प्रकोप समझा गया तो कभी मनोरोग को झाड़-फूंक व काला-जादू समझा गया।
उन्होंने बताया कि मनोरोग चिकित्सालय में परामर्ष के लिए आने वाले व्यक्ति को दूसरों से पूर्णतया भिन्न व्यक्ति के रूप में देखा जाता है। समाज में मानसिक रोगों के प्रति पूर्वाग्रह व दुराग्रह व्याप्त है जिनके कारण लोग मानसिक रोग को छुपाने का प्रयास करते है जिसके कारण युवाओं को अपने जीवनकाल में तनाव, अवसाद, सिजोफ्रेनिया एवं आत्महत्या जैसे गंभीर दुश्परिणाम भुगतने पडते है। इसी को मध्यनजर रखते हुवें विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस वर्ष अपनी थीम “बदलते परिवेश में युवाओं का मानसिक स्वास्थ्य” रखा है।
भारत जैसा देश जिसका भविष्य युवाओं पर निर्भर करता है। 34 प्रतिशत से ज्यादा जहॉ युवा निवास करते है और यही युवा वर्ग को अपने जीवनकाल में सबसे ज्यादा परिवर्तन का सामना करना पडता है। पढाई के लिये स्कूल एवं कॉलेज के लिये एक शहर से दूसरे शहर जाना, नौकरी के लिये घर छोडकर बाहर जाना, शादी जैसी अहम जिम्मेदारी को निभाना, युवावर्ग सबसे ज्यादा नशा, ड्रग्स, वाटसअप, युटयूब एडिक्शन, असुरक्षित यौन संबंध, डेजरर्स ड्राइविंग आदि परिस्थितियां सामने आती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार मानसिक स्वास्थ्य किसी व्यक्ति का वह स्वस्थ्य मन की क्षमता जिसमें वह व्यक्ति अपने जीवन में आने वाली कठिनाई का आराम से सामना कर सके तथा समाधान कर अपने परिवार, समाज व देश के लिये कुछ सकारात्मक(प्रोडक्टिव) सहयोग दे सके। समाज में व्याप्त मानसिक रोगो की स्टीगमा के कारण लोग अपने रोग को छुपाते है। आधे से ज्यादा मानसिक रोग 14 वर्ष की उम्र में ही शुरू हो जाते है लेकिन ज्यादातर का ना डायग्नोस हो पाता ना ही उनका ईलाज होता है। 15 से 29 वर्ष के युवाओं में आत्महत्या मत्यू का दुसरा बडा कारण हैं। वर्तमान मे भारत देश के युवा एक गंभीर मानसिक समस्या से जुझ रहे है जिसमें लगभग 56 मिलियन लोग अवसाद एवं 38 मिलियन लोग तनाव से ग्रसित है। डब्लूएचओ के अनुसार प्रतिघंटे एक विद्यार्थी मानसिक तनाव के कारण आत्महत्या करता है। प्रत्येक चार में से एक व्यक्ति मानसिक रोग से ग्रसित है।
आज के युग में युवाओं मे बढते हुए नशे का प्रचलन एक गंभीर समस्या का रूप धारण कर चुका है। भारत जैसे देश में जहां एक 100 करोड़ से ज्यादा लोग निवास करते हैं उनमें से 6 करोड़ लोग शराब एवं तम्बाकू, 80 लाख लोग भांग का सेवन, 20 लाख अफीम, 6 लाख लोग नशे की दवाईयों का सेवन करते हैं। छोटी काशी कहे जाने वाले बीकानेर जैसे धार्मिक भावनाओं वाले शहर में हर 100 में से 10-12 युवा नशे के आदि हो चुके हैं जिनमें से 95 प्रतिशत पुरुष व 5 प्रतिशत महिलाएं हैं, पिछले 15 वर्षो में 21 वर्ष से कम आयु के बच्चे एवं युवाओं में नशे की प्रवृति 2 प्रतिशत से 14 प्रतिश्त बढ गई है । यह संख्या दिन-प्रतिदिन बढती जा रही है बढती हुई नशे की प्रवृति सामाजिक समस्या बनती जा रही है
उन्होंने बताया कि मानसिक रोगो के कारणों में मस्तिष्क में रासायनिक क्रियायें एवं न्यूरोट्रांसमीटर का उथल-पुथल होना, जीवन में भावनात्मक उथल-पुथल एवं तनाव, आनुवाषिंकी , जन्म से पहले कुपोषण या वायरल संक्रमण या जन्म के समय जटिलताएं आदि है। उन्होंने बताया कि मानसिक रोगो के लक्षणों में सरदर्द, घबराहट, बैचेनी, अनिद्रा, चिडचिडापन, एकांत में चुपचाप बैठे रहना, अपने आप हसंना या रोने लग जाना , अचानक गुस्सा करना , दूसरो पर एक शक करना, कानो में आवाजें आना, बिना बात तोड़-फोड़ करना, बैठे-बैठे हसंना, किसी वस्तु या व्यक्ति के होने का आभास होना आदि है। असवाल ने बताया कि मानसिक रोगों का उपचार में एन्टी साइकोटिक दवाईयां, ई.सी.टी., साईको-थैरेपी, मेडीटेशन(योगा) का प्रयोग किया जाता है। मनोरोगियों की देखभाल पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।मनोरोगियों से अमानवीय व्यवहार जैसे- पीटना, जंजीरों से बॉधें रखना आदि नहीं करना चाहिए । उन्हें स्नेहपूर्ण समझाकर उनकी उतेजना कम करें । आत्महत्या की प्रकृति वाले मनोरोगी को अकेला ना छोड़े । साथ ही मनोरोग किसी प्रकार के जादू-टोनों, प्रेतात्मा या देवी-देवताओं का अभिषाप या पिछले जीवन के दुष्कर्मो का परिणाम या छुआछूत का रोग नहीं है । मनोरोग एक चिकित्सकीय बीमारी है । इसका वैज्ञानिक ईलाज संभव है। अतः अपने नजदीकी मनोचिकित्सक से संपर्क करें तथा तुरंत उपचार करायें, मनोरोगी के उपचार हेतु आपके मनोचिकित्सक के साथ सहयोग करें तथा अपने रोगी का उत्साह बढ़ाये तथा नियमित रूप से दवाईयॉ दें, अपने मनोचिकित्सक को बिना पूछे दवाईया बंद ना करें। उपचार के बारे में कोई शंका है तो अपने मनोचिकित्सक से संपर्क करें ।