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स्वातंत्र्योत्तर राजस्थानी साहित्य पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न

 

चूरू/ सुजानगढ़/ सालासर, hellobikaner.com आजादी के बाद राजस्थानी साहित्य ने बहुत विकास किया है। हर विधा ने अपना सफर उत्तर आधुनिकता तक तय किया है। पचहत्तर साल के राजस्थानी साहित्य का पहली बार मूल्यांकन हुआ है। ये तो शुरुआत है, अभी हमें और मूल्यांकन करना है ताकि विकास की गति को बढ़ा सकें। हमारी राजस्थानी की मान्यता की दिशा में ये ठोस कदम है।

 

यह विचार साहित्य अकादेमी की राजस्थानी भाषा परामर्श मंडल के संयोजक मधु आचार्य आशावादी ने शुक्रवार शाम को दो दिवसीय स्वातंत्र्योत्तर राजस्थानी साहित्य विषयक संगोष्ठी के समाहार वक्तव्य में व्यक्त किये। साहित्य अकादमी नई दिल्ली और मरूदेश संस्थान सुजानगढ़ द्वारा आयोजित इस राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन सत्र की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार भंवरसिंह सामौर ने कहा कि निज भाषा के बिना व्यक्ति और देश निष्प्राण होता है। उन्होंने कहा कि राजस्थानी विश्व की समृद्धतम भाषाओं में से एक है और इसकी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान है।

 

राजस्थानी को संवैधानिक दर्जा मिलने पर इसके विकास को गति मिलेगी। अकादेमी के सहायक संपादक ज्योतिकृष्ण वर्मा ने विभागीय धन्यवाद ज्ञापित किया। विशिष्ट अतिथि हनुमान सेवा समिति के अध्यक्ष यशोदा नंदन पुजारी ने भी विचार व्यक्त किया। समापन सत्र का संचालन जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय जोधपुर के डॉ. गजेसिंह राजपुरोहित ने किया।

 

मरूदेश संस्थान के अध्यक्ष डॉ घनश्याम नाथ कच्छावा ने समापन सत्र में सभी सहयोगियों और प्रतिभागियों का आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार डॉ अर्जुन देव चारण ने डॉ भानीराम मेघवाल की शोध पुस्तक ‘भंवरसिंह सामौर के गद्य साहित्य का अनुशीलन’ का विमोचन किया। इस अवसर सीमा राठौड़ की काव्य पुस्तक सतरंगी आखर के कवर पेज का भी अनावरण किया। आयोजन में प्रोफेसर हीरालाल गोदारा, कुमार अजय, सचिव कमल नयन तोषनीवाल, लालचंद बेदी, बजरंग लाल जेठू, रश्मि सुनील शर्मा, सुनीता रावतानी, अमित तिवाड़ी, रामचंद्र आर्य, मानसिंह सामौर , इलियास खान, जीवन कुमावत , अकादमी के अमित कुमार आदि ने आगन्तुक अतिथियों का स्वागत किया। कार्यक्रम के अंत में संस्थान के संरक्षक नेमिचन्द्र माटोलिया के निधन पर मौन रख कर श्रद्धांजलि अर्पित की गई।

विभिन्न सत्रों में राजस्थानी साहित्य पर मंथन

राष्ट्रीय संगोष्ठी के विभिन्न सत्रों के दौरान स्वतन्त्रता पश्चात के राजस्थानी साहित्य पर विस्तार से मंथन हुआ और स्वातंत्र्योत्तर राजस्थानी साहित्य पर सत्रह पत्र वाचन हुए। साहित्य अकादेमी अवार्डी वरिष्ठ लेखक भंवर सिंह सामौर की अध्यक्षता में हुए पहले सत्र में युवा लेखक डॉ गजेसिंह राजपुरोहित ने ‘स्वतंत्रता के बाद के राजस्थानी काव्य साहित्य’ के विभिन्न आयामों पर चर्चा की। डॉ घनश्याम नाथ कच्छावा ने ‘स्वतंत्रता के बाद के राजस्थानी युवा साहित्य’ तथा सीमा राठौड़ ने ‘स्वतंत्रता के बाद के राजस्थानी गीत एवं छंद साहित्य’ पर चर्चा की। इस सत्र का संचालन डॉ शर्मिला सोनी ने किया।

 

वरिष्ठ लेखक डॉ मंगत बादल की अध्यक्षता में हुए दूसरे सत्र में सीमा भाटी ने ‘स्वतंत्रता के बाद राजस्थानी उपन्यास साहित्य’, विजय जोशी ने ‘स्वतंत्रता के बाद राजस्थानी कथा साहित्य’ तथा हरीश बी शर्मा ने ‘स्वतंत्रता के बाद के राजस्थानी नाटक’ विषय पर आलेख पाठ किया।इस सत्र का संचालन संजय पुरोहित ने किया। तीसरे सत्र की अध्यक्षता ख्यातनाम आलोचक कुंदन माली ने की। इस सत्र में डॉ राजेश कुमार व्यास ने ‘स्वतंत्रता के बाद का कथेतर साहित्य’, रामरतन लटियाल ने ‘स्वतंत्रता के बाद का राजस्थानी आलोचना साहित्य’ तथा डॉ गीता सामौर ने ‘स्वतंत्रता के बाद का राजस्थानी निबंध साहित्य’ पर आलेख पाठ किया और साहित्य के विभिन्न स्वरूपों की व्याख्या की। सत्र का संचालन पूनाराम बिश्नोई ने किया।

दोपहर में हुए चौथे सत्र की अध्यक्षता डॉ मदन सैनी ने की। इस सत्र में नगेन्द्र नारायण किराडू ने ‘स्वतंत्रता के बाद का राजस्थानी बाल साहित्य’, संजय पुरोहित ने ‘स्वतंत्रता के बाद का राजस्थानी अनुवाद साहित्य’, डॉ जगदीश गिरी ने ‘स्वतंत्रता के बाद की राजस्थानी पत्रकारिता’ तथा संतोष चौधरी ने ‘स्वतंत्रता के बाद का राजस्थानी महिला लेखन’ पर आलेख प्रस्तुत किये। संचालन किरण बादल ने किया।

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