आचार्य ने टैगोर और बिज्जी की परंपरा को आगे बढ़ाया : डॉ. चारण
हैलो बीकानेर न्यूज़। साहित्यकार सुखद भविष्य की कल्पना करते हुए अपना सृजन करता है, मधु आचार्य भी ऐसे ही साहित्यकार हैं, जो अपने साहित्य में लोककल्याण की भावना को सर्वोपरि रखते हैं। यह उदगार स्थानीय धरणीधर रंगमंच पर राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के अध्यक्ष डॉ. अर्जुन देव चारण ने व्यक्त किये।
वरिष्ठ रंगकर्मी, पत्रकार, सहित्यकार मधु आचार्य ‘आशावादी’ की चार राजस्थानी कृतियां उपन्यास ‘आस री अमावस’ , कहानी संग्रह दो चोटयां आळी छोरी, कविता संग्रह सूरज री साख और बाल-उपन्यास ‘गुल्लू री गुल्लक’ का लोकार्पण करते हुए बतौर मुख्य अतिथि डॉ. चारण ने कहा कि सहित्यकार उजास का आकांक्षी होता है, वह अपने कथानक में अंततः एक सकारात्मक भाव को स्थापित करता है।
चारण में कहा आचार्य ने रवींद्र नाथ टैगोर और विजयदान देथा ‘बिज्जी’ की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए एक पत्र में उपन्यास लिखकर राजस्थानी के भंडार को समृद्ध किया है। उन्होंने कहा कि बच्चों के लिए लिखने के लिए बच्चा बनना पड़ता है, मधु ने यह कार्य भी बखूबी किया है। इस मौके पर उन्होंने कहा भी भले ही उपन्यास को यूरोप की देन माना जाता है, लेकिन हमारे संस्कृत साहित्य में भी इस विधा के प्रमाण है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए समाजसेवी रामकिसन आचार्य ने कहा कि आम जन तक सहित्य पहुंचाने के लिए लेखन में बरते जाने वाले शब्दों को सरल रखने चाहिये। सरलता से कही गई बात ज्यादा समझ आती है। उन्होंने इस बात पर चिंता जताई कि लोग अपने जीवन मूल्य भूल रहे हैं।
विशिष्ट अतिथि बाल साहित्यकार दीनदयाल शर्मा ने कहा कि सामान्य तौर पर देखा गया है कि बड़े लेखक बच्चों के लिए नहीं लिखते, लेकिन मधु जी के लिए ऐसा नहीं कहा जा सकता। मधु जी निरंतर बच्चों के लिए लिख रहे हैं। अपनी भाषा और बच्चों के लिए लिखना बड़ी बात है।
इस अवसर पर मधु आचार्य ने कहा कि उनका मायड़ भाषा मे लेखन पुरस्कार के लिए नहीं होकर अपनी भाषा के साहित्य भंडार को समृद्ध करना है। राजस्थानी अपणायत की भाषा है, इसके प्रति सेवा-भाव की जरूरत है। इस मौके पर उन्होंने अपनी रचना प्रक्रिया भी बताई।
लोकार्पित कृतियों पर टिप्पणी करते हुए कवि-कथाकार नगेन्द्रनारायण किराड़ू ने मधु जी को आम जन की संवेदना को पकड़ने वाला रचनाकार बताया, जिनकी दृष्टि गहरी है। किराडू ने कहा राजस्थानी उपन्यासों में ‘आस री अमावस’ एक उदाहरण बनेगा।
इस अवसर पर आचार्य की किताबों के कवर बनाने वाले मनीष पारीक व गौरीशंकर आचार्य को सम्मानित किया गया। आचार्य ने अपनी कृति किशोरसिंह राजपुरोहित, डॉ. गौरव बिस्सा, डॉ. परमजीत सिंह वोहरा और दीनदयाल शर्मा को समर्पित की। चारो का इस अवसर पर सम्मानित किया गया।
स्वागत धीरेंद्र आचार्य ने किया। आभार आनंद जोशी ने माना।
कार्यक्रम का संचालन हरीश बी. शर्मा ने किया।
ये रहे उपस्थित
गायत्री प्रकाशन द्वारा प्रकशित मधु आचार्य की चार कृतियों के लोकार्पण समारोह के साक्षी के तौर पर शहर के गणमान्य जन उपस्थित रहे।
विद्यासागर आचार्य, डॉ. नन्द किशोर आचार्य, आनंद वी आचार्य, शशि शर्मा, सरदार अली परिहार, बुलाकी शर्मा, मदन सैनी, डॉ. मेघराज शर्मा, देवकिसन राजपुरोहित, अनिरुद्ध उमट, राजेश चुरा, सुरेश हिंदुस्तानी, इकबाल हुसैन, नीरज दइया, जेठमल सुथार, कैलाश भारद्वाज, ओम सोनी, रामसहाय हर्ष, नवनीत पांडे, इरशाद अज़ीज़, राजेश के. ओझा, जाकिर अदीब, वाली गौरी, सोहन लाल जोशी, प्रमोद चमोली,जुबेर इकबाल, अमित गोस्वामी, नामामीशंकर आचार्य, श्याम व्यास,अशोक व्यास, अनवर उस्ता, आरती आचार्य, मोनिका गौड़, सीमा भाटी, ऋतु शर्मा, दिव्या अवस्थी, इंदिरा व्यास, नितिन वत्सस, हरीशंकर आचार्य, राजाराम स्वर्णकार, राहुल जादुसंगत, ज़िया उर रहमान, नवनीत आचार्य, गौरीशंकर प्रजापत, जगदीश अमन, संजय आचार्य वरुण, दुर्गाशंकर आचार्य, चंद्रशेखर जोशी, लालचंद सोनी, अशोक व्यास, जनमेजय व्यास, आनंद जोशी, गौरव बिस्सा,भंवर पुरोहित आदि लोकार्पण समारोह के साक्षी बने। इस अवसर पर पहले आने वाले पांच आगन्तुकों को पुस्तकें भेंट की गई।