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bharat vyas (1)

करीब सवा सौ भारतीय फिल्मों में लगभग बारह सौ गीतों की रचना करने वाले गीतकार “पण्डित भरत व्यास” वर्ष 1982 में इसी माह की 4 जुलाई को हमसे विदा हो गए। धार्मिक फिल्मों के दर्शक पण्डित जी को कभी नहीं भूल पायेंगे। भरत जी के गीतों में धार्मिकता के साथ साथ जीवन-दर्शन, प्रेमभावना, देशभक्ति, राष्ट्रीय एकता और बलिदान के संदेशों का समावेश होता था। जब हिन्दी सिनेमा के गीतों में उर्दू का बोलबाला था, उस दौर में भरत जी ने शुद्ध हिन्दी में गीत रचे जो कि दर्शकों द्वारा बेहद पसन्द किये गए। चूरू के पुष्करणा ब्राम्‍हण परिवार में जन्में भरत जी के भीतर का कवि बचपन से ही दिखाई देने लगा था जब वे स्कूल में अपने सहपाठियों को फिल्मी गीतों की पैरोडी और तुकबंदिया बनाकर सुनाया करते थे। अपनी स्कूली पढाई के बाद वे बीकानेर आ गये। ऊँचे कद और मजबूत काठी के धनी व्यासजी डूंगर कॉलेज, बीकानेर में अध्ययन के दौरान वॉली-बॉल टीम के कप्तान भी रहे। बीकानेर से नौकरी की तलाश में कोलकाता गये भरत जी ने शुरूआत में रंगमंच अभिनय किया। इस दौरान वे रंगकर्मी के साथ साथ स्वयं नाटक लिखने लगे और गीत भी स्वयं रचते। ‘रंगीला मारवाड़’ ‘रामू चनणा’ ‘मोरध्वज’ एवं ‘ढोला मरवण’ नाटकों से इनको नाटककार और रंगकर्मी के रूप में जबरदस्त प्रसिद्धि मिली। कोलकाता से कुछ समय बीकानेर में बिताने के बाद भरतजी मुम्बई चले गए। फिल्म कलाकार और उनके सगे छोटे भाई बी. एम. व्यास, जो कि उन दिनों मुम्बई थे, ने भरत जी को हिन्दी सिनेमा में प्रथम ब्रेक दिया।

उनका पहला गीत फिल्म ‘दुहाई’ के लिए दस रूपये में खरीदा गया। फिल्म में उनका गीत शामिल किये जाने की घटना ने उनमें इतना जोश भर दिया कि वे एक से बढकर एक जबरदस्त गीत लिखकर संकलित करने लगे। उनकी शानदार लेखन शैली से प्रभावित होकर फिल्मों में उनके गीत लिये जाने लगे और वे फिल्मी दुनिया के एक ख्यातनाम गीतकार बन गए। उन्होंनें अधिकतर गीत किसी फिल्म की सिचुवेशन पर नहीं लिखे क्‍योंकि वे तो लगातार लेखन करते रहते चाहे फिल्म में लिया जाए या नहीं अर्थात गीत लेखन उनका जुनून बन चुका था। जरा सामने तो आओ छलिये, चाहे पास हो चाहे दूर हो, आधा है चंद्रमा रात आधी, तूं छुपी है कहां, ऐ मालिक तेरे बंदे हम, आ लौट के आजा मेरे मीत, जोत से जोत जलाते चलो, ये कौन चित्रकार है… जैसे भरत जी के ढेर सारे गीत आज भी श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। एस एन त्रिपाठी और व्यास जी की जोडी बहुत मशहूर रही। इसके अलावा बसंत देसाई, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल, कल्याणजी-आनन्दजी, कवि प्रदीप, आर डी बर्मन, सी. रामचन्द्र जैसे मशहूर संगीतकारों के साथ भी भरत जी ने खूब कार्य किया। कुछ वर्ष पूर्व तक मुझे यह ज्ञात नहीं था कि वे फिल्म में गायन भी कर चुके हैं पर इंटरनेट पर खोजने पर मुझे पता चला कि वी. शांताराम की फिल्म ‘नवरंग’ में उन्होंनें अपनी लिखी एक हास्य कविता का गायन भी किया है। वैसे तो हिन्दी फिल्मों में हास्य कविता का प्रयोग बहुत कम ही हुआ है पर इस कविता की खास बात यह थी कि इसमें भरत जी ने अपना स्वर भी दिया है। भरत जी की पुण्यतिथि पर उनको सादर श्रद्धांजलि स्वरूप आपके लिये पेश कर रहा हूँ उनके द्वारा लिखित और स्वरबद्ध फिल्म ‘नवरंग’ की यह कविता।

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