Share

श्रीगंगानगर hellobikaner.in राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के उपाध्यक्ष एवं प्रख्यात नाटककार डॉ. अर्जुनदेव चारण ने कहा है कि आज जिस तरह से बाजारवाद हावी हो रहा है, उपभोक्तावाद अपना वर्चस्व बढ़ाता जा रहा है, उसमें सबसे पहला हमला स्मृति पर हुआ है। उपभोक्ता संस्कृति को यह स्वीकार ही नहीं है कि आप सोचें। क्योंकि आप अगर स्मरण करते तो विचार की ओर जाते हैं और विचार से ही दूर करने की प्रवृत्तियां इस समय सारे संसार पर हावी होना चाहती हैं। वे शुक्रवार को सृजन सेवा संस्थान एवं नोजगे पब्लिक स्कूल के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित रंगकर्मी डॉ. पीएस सूदन की सद्य प्रकाशित संस्मरण कृति ‘अतीत का झरोखा’ के विमोचन समारोह की अध्यक्षता करते हुए संबोधित कर रहे थे।

उन्होंने कहा आज संचार क्रांति हमें स्मरण का अवकाश ही नहीं देती। हम याद की प्रक्रिया में ही न जाएं, आज सारी व्यवस्था इसी काम में जुटी हुई है। डॉ. चारण ने कहा कि हमें कोरोनाकाल का उपकार मानना चाहिए कि इसकी वजह से हम स्मृति की ओर लौटे। जब आप चौबीस घंटे घर पर रहते हैं तो निश्चित है कि आप स्मृति की ओर लौटते हैं। डॉ. सूदन की पुस्तक की चर्चा करते हुए डॉ. चारण ने उनकी सादगी, सरलता और उनके सकारात्मक सोच की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि डॉ. सूदन अपने जीवन की सफलता का थोड़ा-सा भी श्रेय खुद को नहीं देते। वे उन लोगों को याद करते हैं, जिन्होंने उनका जीवन संवारने में सहयोग किया। यह अनाम हीरोज के नाम लिखी पुस्तक है।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि साहित्य अकादेमी नई दिल्ली  के राजस्थानी परामर्श मंडल संयोजक मधु आचार्य ‘आशावादी’ ने माना कि पुस्तक ‘अतीत का झरोखा’ निर्मल मन की निर्मल बातें हैं। संस्मरण लिखते समय व्यक्ति कई बार संकोच कर जाता है लेकिन डॉ. सूदन बेहद सरलता और सादगी से अपने अतीत को याद करते हैं। आशावादी ने कहा कि जो व्यक्ति वर्तमान में अतीत को लेकर चलता है, वही बेहतर भविष्य का निर्माण करता है। उन्होंने माना कि जब व्यक्ति का संघर्ष बोलता है तो उसकी सादगी बोलती है।

पुस्तक पर पत्रवाचन करते हुए प्रख्यात साहित्यकार डॉ. मंगत बादल ने कहा कि इस पुस्तक की सबसे बड़ी ताकत इसकी पठनीयता है। पुस्तक में कई संस्मरण इतने मार्मिक हैं कि वे पाठक को भावुक कर देते हैं। यह उनके सकारात्मक चिंतन का प्रभाव है कि वे हमेशा अच्छी चीजों को ग्रहण करते हैं।

दूसरे पत्रवाचक के रूप में राजकीय महाविद्यालय की व्याख्याता एवं आलोचक डॉ. नवज्योत भनोत ने कहा कि आनंद कभी सुविधाओं का गुलाम नहीं होता। डॉ. सूदन का अनुभव बताता है कि जीवन में वही लोग सफल होते हैं, जो समय पर जिम्मेदार हो जाते हैं। उन्होंने माना कि पुस्तक के भावुक प्रसंगों से जुड़कर पाठक भावविभोर होकर पुस्तक से जुड़ जाता है। प्रकृति के साथ-साथ ग्रामीण जीवन की झांकी भी पुस्तक में मिलती है, जो मिट्टी की सोंधी महक को पाठक तक पहुंचाती है।

पुस्तक लेखन एवं प्रकाशन पर चर्चा करते हुए रचनाकार डॉ. पीएस सूदन ने कहा कि उनका बचपन बहुत आनंददायक था। तब खुद लकडिय़ां काटकर लाना और रोटी पकाना भी आनंद के क्षण लगते थे। वह दौर हमारी पीढ़ी के प्रत्येक  व्यक्ति को अपना सा लगता है। उन्होंने माना कि लॉकडाउन के दौरान उनके मन मेें जो विचार आए, वे फेसबुक पर लिखे थे। कुछ मित्रों ने उसे पुस्तक रूप में लाने का सपना साकार किया। इससे पहले सृजन सेवा संस्थान के सचिव कृष्णकुमार आशु ने स्वागत किया। अध्यक्ष डॉ. अरुण शहैरिया ताइर ने आभार जताया। संचालन डॉ. संदेश त्यागी ने किया।

कार्यक्रम में बीकानेर से आए साहित्यकार बुलाकी शर्मा, हरीश बी शर्मा, सेवानिवृत्त डीआईजी दिलीप जाखड़, पीसी आचार्य, सहकारिता विभाग के सेवानिवृत्त अधिकारी गौरीशंकर बंसल, हिंदी व्याख्याता आशाराम शर्मा, पीसी आचार्य, डॉ. ओपी वैश्य, दौलतराम अनपढ़, बीएस चौहान, राजू गोस्वामी, पत्रकार ललित शर्मा, दुर्गा स्वामी, किरण बादल, सुनील शर्मा, योगराज भाटिया, शिक्षक रामकुमार सहित बड़ी संख्या साहित्यकार, साहित्य प्रेमी एवं शहर के गणमान्य लोग उपस्थित थे।

About The Author

Share

You cannot copy content of this page