अखंड सुहाग व मनोनुकूल वर की कामना से जुड़ा मारवाड़ का लोक पर्व ‘बड़ी तीज’ भाद्रपद कृष्ण तृतीया को मनाया जाता है । सुहागिनें अखंड सौभाग्य व कुंवारी कन्याएं मनोनुकूल वर की कामना से रखे तीज का व्रत का पारणा चंद्रमा के दर्शन व पूजन के बाद अध्र्य देकर करती हैं । रात्रि में चंद्रोदय के बाद तीजणियांे आक के पत्तों में सात बार दूध मिश्रित जल का आचमन करती हैं । सुहागिन तीजणियों अपने पीहर से भेजे गये सत्तू के पिण्डों को पति के हाथों पाने की रस्म के बाद उपवास खोलती हैं । इस दिन तीजणियों पूरे श्रृंगार के साथ दिन में मेंहदी लगाती हैं । नवविवाहित तीजणियों व्रत धारण करके घरों के बाहर चबूतरी पर अस्थाई तळाई में दूध-दही मिश्रित जल में मोती, ककड़ी, आक का पत्ता, सत्तू, चावल, रौळी, मोळी, नीम्बू, मेंहदी, नीमड़ी की प्रतिकृति के दर्शन करती हैं । पूजन के दौरान तीजणियों एक दूजे से पूछती है कि ‘तळाई में नीम्बू दीठ्यौ के नहीं दीठौ..’ ! प्रत्युत्तर में सभी तीजणियों कहती हैं – ‘दीठौ बाई दीठौ….दीठ्यौ जेड़ौ टूट्यौ ।’ ‘तीज का ऊजमणा’ करने वाली सुहागिन तीजणियों 16 परिचित तीजणियों को सत्तू से बने ‘पिण्डे’ भेंट करती हैं ।