हैलो बीकानेर न्यूज़ नेटवर्क, चूरू, सादुलपुर (मदनमोहन आचार्य) hellobikaner.com चूरू के सादुलपुर राजगढ़ शहर में अनेक दानवीर सेठों ने अपने खून पसीने की कमाई से जनहितार्थ विकास कार्य करवाये गये थे जो आज भी अपनी पहचान बनाये हुए हैं।
राजगढ़ शहर के स्वर्गीय सेठ कन्हैयालाल उर्फ कनीराम मोहता माहेश्वरी द्वारा लगभग 120 वर्ष पूर्व कस्बा राजगढ़ से साखूं जाने वाले राजमार्ग (वर्तमान में कस्बा राजगढ़ से रेलवे स्टेशन जाने वाली मुख्य सड़क) के पास स्वयं के नाम की पट्टाशुदा भूमियों को जनहितार्थ व धर्मार्थ रखते हुए राहगीरों की सुविधा हेतु उनमें करीब तेरह हजार दरगज भूमि में अपने स्वयं के खर्चा से एक विशाल धर्मशाला (सेठ कन्हैया लाल मोहता धर्मशाला) तथा धर्मशाला एवं कस्बा राजगढ़ के आम नागरिकों के पेयजल की पूर्ति हेतु औषधीय गुणों युक्त चूना निर्मित विशालकाय कुड़ मय विशालकाय पायतन तथा एक चाह/कुआं व श्री बालाजी मंदिर का निर्माण करवाकर रिफा ए आम हेतु उक्त भूमि मय धर्मशाला, कुंड़ व पायतन, कुआं तथा मंदिर को सुरक्षित कर दिया था।
उक्त काल में कस्बा राजगढ़ में भूमिगत जल काफी खारा होने के कारण किसी भी प्रकार पीने योग्य नहीं था एवं मरुस्थल होने से पानी की भारी किल्लत रहती थी लेकिन भामाशाह, दानवीर व धर्म परायण सेठ श्री कन्हैयालाल उर्फ कनीराम मोहता माहेश्वरी के अथक प्रयासों व उनके स्वयं के खर्चा से उक्त तमाम निर्माण आमजन के लिए उपयोग उपभोग व धर्मार्थ, जनहितार्थ किया गया था।
धर्म परायण सेठ श्री कन्हैयालाल उर्फ कनीराम मोहता माहेश्वरी के उक्त भागीरथी प्रयास से कस्बा राजगढ़ के आम जन को पीने का वर्षा का मीठा जल हर समय उपलब्ध होने से आमजन भोर काल से देर रात्रि तक दूर दूर से आकर उक्त कुंड़ व कुआं का पानी कतारबद्ध होकर ले जाया जाता रहा है। उक्त कुंड़ के बारे में दूर दूर तक प्रसिद्ध रहा है कि उक्त कुंड़ अपने निर्माण के बाद आज तक कभी भी खाली नहीं हुआ है एवं उक्त कुंड़ बीस हाथ चौड़ा व करीब चालीस हाथ गहरा निर्मित किया गया है जिसके विशालकाय पायतन से बारिष का तमाम पानी कुंड़ में एकत्र होता है।
वर्तमान में जल संग्रहण मॉडल पर जिस प्रकार जोर दिया जा रहा है धर्म परायण सेठ श्री कन्हैयालाल उर्फ कनीराम मोहता माहेष्वरी द्वारा उक्त कुंड़ के जरिए जल संग्रहण कर पूरी बीकानेर रियासत में एक नया आयाम स्थापित किया था। स्थानीय किवंदती है कि उक्त कुंड़, मंदिर व धर्मशाला तथा कुआं के निर्माण के बारे में जनमानस से चर्चा सुनकर बीकानेर रियासत के महाराजा ने स्वयं उक्त कुंड़, मंदिर व धर्मशाला तथा कुआं का अवलोकन कर इसे अद्भुत बताया था।
उक्त धर्मशाला, कुंड़, कुआं व पायतन का निर्माण काफी कुशलता से किया गया था जो आज भी उसी स्वरुप में बिना किसी नुकसान व क्षति से पूर्णतया सुरक्षित हालात में है एवं निर्माण की गुणवत्ता ऐसी है कि अच्छे से अच्छे इंजीनियर भी दाद देते हैं। मंदिर परिसर में भगवान शिव परिवार, बालाजी मंदिर के बारे में पूरे क्षेत्र में यह मानना है कि यहां जाग्रत रुप में भगवान बालाजी विराजमान हैं जो मनोकामना पूर्ण करते हैं व चमत्कारी हैं तथा प्रतिदिन दूर दूर से सैकड़ों श्रद्धालु मंदिर में दर्शन व मन्नत मांगने आते हैं एवं मनोकामना पूर्ण होने पर सवामणी आदि करके जाते हैं। अकाल, सूखे के समय भी पूरे कस्बा में उक्त कुंड़ व कुआं से पेयजल की व्यवस्था तत्समय की गई थी।
उक्त समस्त निर्माण को आज भी हूबहू हालात में देखकर वर्तमान पीढ़ी के लोग आश्चर्य करते हैं। मंदिर में सदैव पूजा अर्चना करने वाले पंडित श्री सत्यनारायण जोशी उर्फ सतू महाराज ने हमारे स्वतंत्र पत्रकार मदन मोहन आचार्य को मोहता धर्मशाला, विशाल कुण्ड मय पायतन, श्री बालाजी मन्दिर, कुआं आदि के बारे में बताया कि आज भी उक्त मोहता धर्मशाला, विशाल कुण्ड मय पायतन, श्री बालाजी मन्दिर, कुआं आदि आस पास के दुकानदारों, पड़ोसियों और भक्तों तथा आमजन के उपयोग उपभोग में चला आ रहा है तथा नि:स्वार्थ भाव से श्री मोहता परिवार द्वारा सेवाएं दी जा रही हैं।
मैं आपको कहूं कि आप एक ऐसे कुण्ड की कल्पना कीजिए जो 100 साल से ज्यादा पुराना हो और जिसका पानी आज तक खत्म नहीं हुआ, वह कुण्ड आज तक सूखा नहीं हो तथा भरपूर औषधीय गुणों से युक्त व उच्च गुणवत्ता वाले निर्माण से युक्त हो, शायद यह कल्पना करना आपके लिए मुश्किल होगा लेकिन यह सत्य व वास्तविक रुप से कस्बा राजगढ़ में श्री मोहता धर्मशाला, विशाल कुण्ड मय पायतन, श्री बालाजी मन्दिर, कुआं आदि के रुप में अवस्थित है।
स्वर्गीय सेठ कन्हैयालाल उर्फ कनीराम मोहता माहेश्वरी के उक्त धर्मार्थ व जनहितार्थ काम को देखकर उनके पुत्रगण अनेचंद व नारायण दास के वारिसान ने भी उक्त कार्य को आगे बढ़ाते हुए उक्त श्री मोहता धर्मशाला, विशाल कुण्ड मय पायतन, श्री बालाजी मन्दिर, कुआं आदि के पास चिपती और भूमि को नगरपालिका राजगढ़ से बगीची बनाने के लिए रिफा ए आम हेतु पट्टा के जरिए प्राप्त की थी। बीकानेर रियासत में ऐसे उदारण विरले मिलते हैं।