हैलो बीकानेर न्यूज़ नेटवर्क, बीकानेर, hellobikaner.com भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का 14वें राष्ट्रीय संस्कृति महोत्सव में सम्बोधन…. सभी को मेरी राम राम सा! आज इस 14वें राष्ट्रीय संस्कृति महोत्सव में आकर और कला तथा संस्कृति के इस राष्ट्रीय उत्सव का उद्घाटन करके, मुझे बहुत प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है।
मुझे बताया गया है कि यह उत्सव देश के विभिन्न राज्यों में आयोजित किया जा चुका है और पहली बार इसका आयोजन राजस्थान में हो रहा है। हम में से बहुत से लोग बीकानेर को बीकानेरी खाद्य पदार्थों के कारण जानते होंगे लेकिन इतिहास में बीकानेर के महल और किले महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। उसके अलावा बीकानेर camels से जुड़े नृत्यों और त्योहारों के लिए भी जाना जाता है।
देवियो और सज्जनो
यह बहुत हर्ष की बात है कि राष्ट्रीय संस्कृति महोत्सव देश के अलग-अलग राज्यों से आए कलाकारों को अपनी प्रतिभाएं सबके सामने प्रस्तुत करने का सुअवसर प्रदान कर रहा है। मुझे बताया गया है कि एक हज़ार से भी अधिक कलाकार और कारीगर इन नौ दिनों में अपनी अद्भुत कलाओं का प्रदर्शन करेंगे।
अभी पिछले सप्ताह ही मुझे संगीत नाटक अकादमी अवार्ड्स में देश के वरिष्ठ कलाकारों और कलाविदों से मिलने का अवसर मिला। कला क्षेत्र के प्रतिभावान और महान विभूतियों को देखकर मन में नई ऊर्जा का संचार होता है। राष्ट्रीय संस्कृति महोत्सव जैसे कार्यक्रम देश की कला और संस्कृति को तो बढ़ावा देते ही हैं, साथ ही साथ राष्ट्रीय एकता की भावना को भी और मजबूत बनाते हैं। इस तरह के सांस्कृतिक आयोजनों से हमारे देशवासियों को हमारी सम्पन्न तथा समृद्ध संस्कृति और विभिन्न क्षेत्रों की विशेषताओं को जानने और समझने का अवसर मिलता है। मैं संस्कृति मंत्री, संस्कृति राज्य मंत्री और मंत्रालय की पूरी टीम को इस महोत्सव के आयोजन के लिए बधाई देती हूं।
देवियो और सज्जनो
प्राचीन काल से ही हमारी कला शैली उच्च स्तर की रही है। सिन्धु घाटी की सभ्यता के समय से ही नृत्य, संगीत, चित्रकारी, वास्तुकला जैसी अनेक कलाएँ भारत में विकसित थीं। भारतीय संस्कृति में अध्यात्म की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। सृष्टि की प्रत्येक रचना कला का अद्भुत उदाहरण है। नदी की लहर का मधुर संगीत हो या मयूर का मनमोहक नृत्य, कोयल का गीत हो, मां की लोरी या नन्हे से बच्चे की बाल-लीला हो, हमारे चारों ओर कला की सुगंध फैली हुई है।
देवियो और सज्जनो
प्रौद्योगिकी का परम्पराओं से और विज्ञान का कला से मेल होना जरूरी है। आज का युग प्रौद्योगिकी का युग है। हर क्षेत्र में विज्ञान और प्रौद्योगिकी की सहायता से नए-नए प्रयोग किये जा रहे हैं। कला और संस्कृति के क्षेत्र में भी टेक्नोलॉजी को अपनाया जा रहा है। इन्टरनेट के माध्यम से नए और युवा कलाकारों की प्रतिभा भी देश के कोने-कोने तक फैल रही है। हम नयी टेक्नोलॉजी का उपयोग करके देश की कला, परम्पराओं और संस्कृति का प्रसार व्यापक रूप से कर सकते हैं। हम सब को भारत की संपन्न और समृद्ध संस्कृति पर गर्व होना चाहिए। साथ ही, हमें अपनी परम्पराओं में, नए विचारों और नयी सोच को स्थान देना चाहिए, जिससे हम अपने युवाओं और आने वाली पीढ़ी को भी इन परम्पराओं से जोड़ सकते हैं। हमारे युवा और बच्चे देश की अनमोल विरासत के महत्व को समझें, यह बहुत आवश्यक है।
सच्चे कलाकारों का जीवन तपस्या का उदाहरण होता है। किसी भी काम को concentration और devotion के साथ कैसे किया जाता है, यह सीख हम कलाकारों से ले सकते हैं। ख़ास तौर पर हमारी युवा पीढ़ी को हमारे कलाकारों से बहुत कुछ सीखने को मिलेगा। मैं कहना चाहूंगी कि ऐसे अधिक से अधिक कार्यक्रम और कार्यशालाएं आयोजित की जाएँ जिनके माध्यम से युवाओं और अनुभवी कलाकारों के बीच विचारों और प्रतिभाओं का आदान प्रदान हो सके।
LIVE: President Droupadi Murmu addresses the 14th Rashtriya Sanskriti Mahotsav at Bikaner, Rajasthan https://t.co/83yzQwZPTX
— President of India (@rashtrapatibhvn) February 27, 2023
आज के डिजिटल युग में हमें यह भी देखना होगा कि कैसे हम नयी पीढ़ी को निरंतर अभ्यास और मेहनत करने की प्रेरणा दे सकें। आज के लोगों का जीवन और समय बहुत तेज गति से भाग रहा है। इसलिए अपनी कला और संस्कृति की धरोहर को आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाना आसान नहीं है। यहाँ उपस्थित महान विभूतियों, विद्वानों, कला प्रेमियों, कलाकारों को मैं यह काम सौंपना चाहती हूँ। आप सब को मिलकर ऐसे उपाय और तकनीक निकालनी होगी जिससे आज के लोग, ख़ासकर युवा और बच्चे, अपने समय का सदुपयोग करें और कला-संस्कृति को समझने और सीखने के लिए प्रयास करें तथा निपुणता के लिए अभ्यास करते रहें। मुझे पूरा विश्वास है कि आप ज़रूर इस ओर ध्यान देंगे और राष्ट्र की सम्पन्नता और समृद्धि को और बढ़ाएंगे।
देवियो और सज्जनो
हम जानते हैं कि परिवर्तन जीवन का नियम है। कलाओं, परम्पराओं और संस्कृति में भी समय के साथ परिवर्तन आता ही है। कला शैली, रहन-सहन का ढंग, वेश-भूषा, खान-पान सब में समय के साथ बदलाव आना स्वाभाविक है लेकिन कुछ बुनियादी मूल्य और सिद्धांत पीढ़ी दर पीढ़ी आगे चलते रहने चाहिए, तभी भारतीयता को हम जीवित रख सकते हैं। ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की भावना, शांति और अहिंसा, प्रकृति से प्रेम, सब जीवों के लिए दया, दृढ़ संकल्प से आगे बढ़ना – ऐसे अनेक मूल्य हैं जो हम सब देशवासियों को एक सूत्र में बांधते हैं। आज भारत विश्व भर में अपनी नई पहचान बना चुका है जिसमें आधुनिक सोच को अपनाने के साथ-साथ परंपराओं और संस्कृति को सहेजने की क्षमता है।
मैं एक बार फिर आप सबको राष्ट्रीय संस्कृति महोत्सव के आयोजन के लिए बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएं देती हूँ और इसकी सफलता की कामना करती हूँ। आप सबका जीवन उद्देश्यपूर्ण हो और भविष्य मंगलमय हो, इसी कामना के साथ मैं अपनी वाणी को विराम देती हूँ।
धन्यवाद !जय हिन्द! जय भारत!