आस माता का व्रत फाल्गुन शुक्ल पक्ष के प्रतिपदा से अष्टमी तक के किसी भी एक तिथि को किया जाता है। इस व्रत में आसामाई का पूजन करते हैं। ऐसा माना जाता है कि जब तक हमारे जीवन में आशा है तब तक हमारी सभी इच्छायें पूरी होती है। आसामाई की प्रसन्नता से हमारे सभी काम पूरे होते हैं। अत: हमें हमेशा आसामाई को प्रसन्न रखना चाहिये एवं उनका साथ कभी नहीं छोड़ना चाहिये। यह व्रत स्त्रियों के लिये हैं। इस व्रत को करने वाली महिलायें गोटियों वाला मंगलसूत्र पहनकर आसा माता को भोग लगाती है तथा वही भोग अन्य महिलाओं को देती है। इस दिन केवल मीठा भोजन ही करें।
उद्यापन:
यदि किसी वर्ष लड़के का जन्म होता है अथवा लड़के का विवाह होता है तो उस वर्ष आस माता के उद्यापन का विधान है। उस वर्ष पूजा के बाद सात जगह चार-चार पूड़ी और हलवा की साथ विशेष उपहार रखकर सासु जी को बायना के रूप में देते हैं।
पुजन सामग्री
1. पान का पत्ता
2. गोपी चंदन (लाल)
3. लकड़ी का पटरा या चौकी
4. चार कौड़ी
5. आसामाई की तस्वीर
6. कलश (मिट्टी)
7. रोली
8. अक्षत
9. धूप
10. दीप
11. घी
12. गेहूँ की बाली
13. नैवेद्य( हलवा- पूड़ी)
14. सूखा आटा