हैलो बीकानेर, जयपुर, ऋषि कुमार । पूर्व मुख्यमंत्री एवं कांग्रेस महासचिव अशोक गहलोत ने कहा है कि प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा मानव संसाधन विकास मंत्रालय को केन्द्रीय विद्यालय और जवाहर नवोदय विद्यालयों को सैनिक स्कूल के मॉडल पर संचालित करने का प्रस्ताव दिया है, जबकि प्रदेश की कांग्रेस की पूर्ववर्ती सरकार द्वारा राज्य के झुन्झुनू एवं अलवर जिले में सैनिक स्कूल खोलने की स्वीकृति के बावजूद प्रदेश की वर्तमान भाजपा सरकार द्वारा अब तक कोई कार्यवाही नहीं किया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है।
पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रदेश की भाजपा सरकार ने अपने तीन वर्ष के कार्यकाल में पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के समय प्रारम्भ की गई रिफाईनरी, जयपुर मेट्रो, डूंगरपुर-बांसवाड़ा-रतलाम रेल लाईन, मेमू कोच फैक्ट्री, परवन सिंचाई जैसी महत्वपूर्ण लोक कल्याणकारी परियोजनाओं को केवल कमजोर और अवरूद्ध करने का ही काम किया है। उन्होंने कहा कि झुन्झुनू में तो सैनिक स्कूल के लिए पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के समय ही भूमि आवंटन का कार्य पूरा हो गया था, परन्तु वर्तमान भाजपा सरकार ने इन स्कूलों को खोलने के लिए अब तक कोई कार्यवाही नहीं की।
गहलोत ने कहा कि भाजपा सरकार ने प्रदेश में प्रारम्भिक शिक्षा को कमजोर कर दिया है, जिससे शिक्षा व्यवस्था चरमरा गयी है। उन्होंने कहा कि भाजपा ने सरकार में आने के बाद प्राथमिक स्कूलों के एकीकरण के नाम पर लगभग 27 हजार प्राथमिक/ उच्च प्राथमिक विद्यालय बंद कर दिये, जिससे विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में गरीब एवं कमजोर वर्गों के छात्र-छात्राओं को शिक्षा से वंचित होना पड रहा है।
पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि गत तीन वर्षों के दौरान निःशुल्क शिक्षा अधिकार अधिनियम 2009 की पालना की प्रक्रिया में भी सरकारी स्तर पर उदासीनता बरती गयी, जिससे आरटीई में तीन साल में लगभग एक लाख विद्यार्थियों को शिक्षा से वंचित होना पड़ा।
गहलोत ने कहा कि पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के समय प्रदेश में राजीव गांधी पाठशाला, शिक्षा आपके द्वार, लेपटॉप एवं पीसी टेबलेट वितरण सहित विभिन्न योजनाओं के माध्यम से राजकीय विद्यालयों के प्रति विद्यार्थियों में आकर्षण बढा था। भाजपा सरकार ने विद्यालयों के एकीकरण, स्टाफिंग पैटर्न एवं शिक्षकों के नियम विरूद्ध सेटअप परिवर्तन कर प्राथमिक एवं माध्यमिक विद्यालयों को एकल शिक्षक के भरोसे छोड़ दिया है। इस कारण ग्रामीण क्षेत्रों के गरीब एवं कमजोर वर्ग के बच्चों को मजबूर होकर निजी स्कूलों में प्रवेश लेना पड़ रहा है।