बीकानेर। बीकानेर को साहित्य की राजधानी क्यो कहा जाता है आज एक बार फिर चरितार्थ हुआ धरणीधर सभागार में जब राजस्थानी भाषा के स्वनामधन्य शसक्त हस्ताक्षर आदरणीय अर्जुन देव चारण जी और समाज सेवी रामकिशन जी आचार्य के करकमलों से बीकानेर के सात सात साहित्यकारों की राजस्थानी कृतियों का लोकार्पण हुआ और बीकानेर के साहित्यकार पत्रकार और प्रबुद्ध नागरिक गण बने इस ऐतिहासिक पल के धरणीधर सभागार में आज।
रड़कता सुपनां – मधु आचार्य ‘आशावादी’
बाजोट – हरीश बी. शर्मा
सरप्राइज – ऋतु शर्मा
जाग मिनख तू नींद सूं-रामसहाय हर्ष
मन रो सरणाटो- इरशाद अजीज
पैल-दूज – सीमा भाटी
जीतगी जमना – बुलाकी शर्मा जी की कृतियां लोकार्पित हुई
मुख्य अतिथि अर्जुनदेव चारण ने कहा कि आज इस बात की खुशी है कि एक बार फिर सृजन में नवाचार हुआ है आज का उत्सव इस बात के लिए भी याद रखा जाएगा कि यह दो भाषाओं के बीच या यूं कहु की अन्तरभाषा के बीच जो पुल आज बना है वो साहित्य के क्षेत्र में मिल का पत्थर साबित होगा।और अन्य भाषा प्रेमियों को राजस्थानी भाषा की तरफ मोड़ने के लिए गायत्री प्रकाशन साधुवाद का पात्र है।
अर्जुन देव चारण ने कहा कि परिवार के त्याग के बिना लेखन संभव नही और जो लेखक बन गए है उनको अपने परिवार के त्याग को कभी नही भुलाना चाहिए। आज के बढ़ते सोशल मीडिया पर चिंता जाहिर करते हुए चारण ने कहा कि आज पढ़ने की रुचि खत्म हो गयी है खासतौर से कागज पढ़ने की जो लालसा है उसका विलोप्त होते जाना निश्चय ही लेखन के क्षेत्र को खत्म करने जैसा है। बिल गेट्स का उदाहरण देते हुए उन्हीने कहा कि उसने भी फेसबुक को छोड़कर किताब पढ़ने की तरफ रुख किया इसलिये युवा भी किताबो की तरफ बढ़े।
लेखन की महत्वता बताते हुए चारण ने कहा कि अगर अनादि काल मे तुलसीदास वाल्मीकि आदि जैसे महापुरुष लिखते नही तो हम शृष्टि का सुन्दर दर्शन कैसे संभव हो पाता। देश भर में घटते लेखकों के बीच बीकानेर में साहित्य के प्रति बढ़ते प्रेम पर बीकानेर के साहित्य प्रेमियों का ह्रदय से आभार व्यक्त किया और कहा कि जब तक लेखक को पढ़ने वाला नही मिलता तब तक वो नया लिखना नही सोच पाता और नीरसता की और बढ़ता है लेकिन बीकानेर अपने लेखकों को आशीर्वाद देते है इसलिए बीकानेर साहित्य का पोषक है इसमें कोई अतिशयोक्ति नही। गायत्री प्रकाशन को भी सृजन की निरंतरता बनाये रखने पर चारण ने साधुवाद दिया और लेखकों को शुभकामनाये दी।
लोकार्पण अवसर पर साहित्यकार और पत्रकार मधु आचार्य आशावादी ने कहा कि बीकानेर राजस्थानी भाषा की राजधानी है और जितने भी लेखक राजस्थानी के लिए उन्होने तैयार किये उसकी प्रेरणा उनको अर्जुन देव चारण से मिली| मधु आचार्य ने कहा कि लिखना सहज नही होता और अपनी मातृभाषा में लिखना वास्तविकता में अपने आप को गौरान्वित करना है| आचार्य ने कहा कि जिस तरह आज सभी लेखकों ने अपनी कृतियां अपने परिवार को समर्पित की यही खासियत है राजस्थानी की जो अपने रिस्तो को निभाना सिखाती है चारण साब को भरोसा दिलाते हुए मधु आचार्य ने कहा कि राजस्थानी की यह यात्रा बीकानेर से निरंतर जारी रहेगी।
साहित्यकार बुलाकी शर्मा ने इस अवसर पर कहा कि लेखन का क्षेत्र सरल नही है लेकिन इस से सहज भी कोई कार्य नही अगर कार्य की निरंतरता जारी रहे मधु आचार्य जी प्रेरक के रूप में सदेव साथ रहते है तो लगता है कि इस भाषा को मान्यता के आंदोलन को नई दिशा मिलेगी| बुलाकी शर्मा जी ने कहाकि लिखना इतना आसान नही होता लेकिन जिनके लिए लिखता हूं पहले उनके साथ रहता हूं उनकी बातों को समझता हूं तब जाकर उनको शब्दो मे पिरोता हु फिर सृजन निकल कर आता है आप सभी का सहयोग मिलता है तो लिखने का मन बन जाता है।
नव लेखक रामसहाय हर्ष ने कहा कि लिखना मेरे बूते की बात नही थी निर्देशन करता नाटक करता लेकिन यह क्षेत्र अपने आप मे अनूठा है|जब लिखने की बात आई तो पहले तो कुछ समझ ही नही पाया लेकिन सबका सहयोग मिला और आज लेखक के रूप में आपके सामने हु। लेकिन आज यह भी महसूस किया कि वास्तव में लेखन बहुत ही कठिन कार्य है जो करते है व्व धन्यवाद के पात्र है।
साहित्यकार इरशाद अजीज ने कहा कि आज तक अपनी मायड़ भाषासे अछूता था सच कहूं तो में दोषी भी हु और आज इस से जुड़कर लगा कि राजस्थानी भाषासे ज्यादा अपनत्व वाली कोई भाषा नही| इरसाद ने कहा कि राजस्थानी से दूर रहने के कारण ही शायद आज तक यह मान्यता से दूर है लरकीं मेरे जैसे हजारों लेखक जब राजस्थानी में लिखेंगे तो वो दिन दूर नही जब हुकूमतदारों को राजस्थानी को मान्यता देनी पड़ेगी।
कवियत्री सीमा भाटी ने कहा कि कविता और मेरे बीच गहरा रिश्ता है लेकिन आज अपनी मायड़ भाषा मे लिखकर लग रहा है कि इस से सहज कोई भाषा हो ही नही सकती जो अपनो को जोड़कर रख सके। महिला होकर लिखना परिवार के सहयोग बिना संभव नही में खुशकिस्मत हु की मुझे अपने परिवार और बीकानेर का सहयोग मिला।
साहित्यकार ऋतु शर्मा ने कहा कि यह मेरी तीसरी कृति है लेकिन आज अपनी खुद की भाषा राजस्थानी में लिखकर खुद को आज गौरान्वित महसूस कर रही हु अपनो से रिस्तो की भाषा का जो अपनत्व है व्व राजस्थानी का आभूषण है गायत्री प्रकाशन को धन्यवाद जो नए नए लेखकों को अवसर देता है।
अध्यक्षता करते हुए रामकिशन आचार्य ने कहा कि नए नए लेखकों का उदगम सुखी तो करता है लेकिन जब तक हम खुद अपनी भाषा को रोजमरा में उपयोग नही करेंगे तब तक इसका विस्तार संभव नही चारण साब का विशेष धन्यवाद देते हुए रामकिशन जी ने कहा कि संगत का असर होता है और आपने जब से बीकानेर को संभाला है तब से मायड़ भाषा बीकानेर में बढ़ती जा रही है और आपके सहयोग के बिना यह संभव नही आप के साथ साथ मधु आचार्य आशावादी भी धन्यवाद के हकदार है जो कि एक पाठशाला के रूप में रोज नए नए रचनाकार बीकानेर और देश को दे रहे है महिला और पुरुष दोनों का समान अवसर देकर बीकानेर को साहित्य की राजधानी बनाने का कार्य कर रहे है जो कि अविस्मरणीय योगदान है| आचार्य ने गायत्री प्रकाशन और बीकानेर के सुधी पाठकों को भी धन्यवाद दिया जिनके बूते आज यह क्षेत्र बढ़ रहा है।
साहित्य संगम के इस बड़े उत्सव का संचालन साहित्यकार हरीश बी शर्मा ने किया स्वागत भाषण पत्रकार धीरेंद्र आचार्य ने दिया और आभार प्रेस क्लब के अध्यक्ष अनुराग हर्ष ने ज्ञापित किया।