सांस्कृतिक संस्था परम्परा व भारतीय परम्परा चेतना अभियान की संरक्षिका श्रीमती मंजूलिका झंवर अपने बीकानेर प्रवास के दौरान आज हुई बातचीत के कुछ अंश : –
आप किन प्रोजेक्ट पर काम कर रही हैं।
हम राष्टधर्म, भू माता, तुलसी माता, गौ माता, मातृत्व, ब्राह्मण प्रज्ञा, संकलपात्मक जीवन, स्वधर्म, अन्तर बाहर शुचिता एवं उद्वरेदात्मनात्मानं पर काम कर रहे हैं। ताकि हम अपनी परम्पराओं को बचा सके।
परम्पराओं से दूर हो जाने की क्या वजह रही?
ब्रिटिश के यहां से जाने के बाद उन्होंने जो ओवर सोशयलिस्टिक पैटर्न बना दिया था उससे परम्पराओं से दूर होते रहे। इसलिए सबसे पहले हमें गांवों का संरक्षण करना होगा।
गांवों का संरक्षण कैसे होगा?
गांवों के संरक्षण से देश के ह्रदय का संरक्षण होगा, सत्य का संरक्षण होगा तभी गांव का संरक्षण होगा। पहले ग्रामीण कमाने के लिए शहर जाते थे और वापस गांव लौट कर जीवन बिताते थे। गांव में ही अपने प्राण त्यागते थे। अपनी जड़ों से जुड़े थे। अब जो कमाने निकलता है वह लौटकर नहीं आता। यह चक्र खत्म हो रहा है। इससे देश खत्म हो रहा है। हमें गांवों के संरक्षण के लिए उनमें आध्यात्मिक चेतना को जगाना होगा। गांवों में काम करना होगा।
अभी आप कितने गांवों में उनके संरक्षण पर काम कर रही हो?
अभी हम पांच गांवों पर काम कर रहे हैं। इनमें नोखा तहसील का चरखड़ा, कोलायत का दियातरा, गडिय़ाला, गिरिराजसर व खारीचारणान का चयन किया है। गांव वालों की उन्नति गांव वालों द्वारा इस थीम को लेकर हम गांवों में काम कर रहे हैं।
ब्राह्मण कौन है?
यजुर्वेद में आया है जो आत्मा सूर्यलोक तक जाकर आए वह ब्राह्मण है। ब्राह्मण को फिर से साधना में जुटना होगा। यह साधकों का देश है। ब्राह्मण फिर से साधानारत हो जाए तो देश मजबूत होगा।
केवल ब्राह्मणों के बात करेंगे तो समाज को बांटने का संदेश तो नहीं जाएगा?
समाज जाति से नहीं अज्ञान से बंटा है। हमें बोलना तो पड़ेगा ही। ब्राह्मण प्रज्ञा को मजबूत करेंगे क्योंकि ब्राह्मण स्वयं के लिए कुछ नहीं करता, वह पूरे देश के लिए करता है। इसलिए ब्राह्मण प्रज्ञा को छोटा नहीं समझे। ब्राह्मण प्रज्ञा को सक्षम बनाना होगा।
अभी भारत देश किस दौर से गुजर रहा है?
आज भारत माता के कष्ट का समय है – उसकी परम्पराओं द्वारा पोषित सनातन मान्यताओं , मूल्यों का नहीं। चकाचौंध, विज्ञापनों, मोह, अविद्या द्वारा आत्मा, बुद्धि को सुप्त कर मन को भावुक, बलहीन बना, जैसे-तैसे जुगाड़ कर स्वार्थ सिद्धि का समय है – तप और स्वाभिमान का नहीं। केवल क्षुद्र अहं की तृप्ति का समय है – सर्वांगीण चेतनोत्थान के प्रयासों का नहीं, जीने का कोई महत्,लक्ष्य नहीं, पुरूषार्थ में खरे उतरने का नहीं । स्वयं को स्वयं ही सत्य से दूर रखने का समय है।
समाज में किस तरह का अंतर देखते हंै?
भारत भूमि में जन्मे मनुष्य के पशुत्व का निराकरण कर देवता बनाए जाते थे। अनन्त ज्ञान-विज्ञान की इस भूमि में मोक्ष और ईश्वर प्राप्ति से कम लक्ष्य नहीं था। आज बाबा लोगों का जमाना है। उनकी कृपा का स्वयं के तप, स्वाध्याय, सत्कर्म और चिन्तन का, स्वयं के द्वारा स्वयं के उत्थान का समय नहीं। कितनी तपस्या, श्रम से हमारे ऋषि मुनियों ने अनेक उपायों से सनातन सत्य और उसे जीने की कला को समाज के हर वर्णाश्रम में पहुंचाया था। राम अगर पुरूषोत्तम बन सकते थे तो शबरी भी अपनी भक्ति की सरलता से मोक्ष प्राप्त कर सकती थी। किसी के लिए वेद उपनिषद थे, तो कोई पुराणों, धर्मशास्त्रों से सत्य को अपने जीवन में उतारते थे। कोई रामायण, महाभारत के चरित्रों की सहायता से अपने चरित्र को ढालते थे, कोई हनुमान जैसा सेवक बनना चाहता तो कोई लक्ष्मण जैसा भाई। किसी को सीतामाता का ज्ञानमय त्याग भाता तो किसी को यशोदा मैया की ममता। अपनी समझ से सब अपने सत्य को खोजते, समझते और सहजता से साधते थे।
अब देश का उत्थान कैसे होगा?
ब्राह्मणों का उत्थान होने पर ही देश का उत्थान होगा।
इस राष्ट्र के पतन के पीछे और क्या कारण रहे?
हम फिर से एक-एक गांव की इकाई स्वयं मिल बैठ अपनी समस्याओं के समाधान भारतीय सनातन मूल्यों के आलोक में व्यवस्थाओं में फिर से खोजें, जिन्होनें भारत भूमि के जीवन के हर पहलू को सर्वश्रेष्ठ बनाया था। हमारे शास्त्रों में सारे समाधान हैं। यहां तक कि हमारे ग्रामीण जीवन व्यवस्थाओं में ही वो समाधान हैं। एक गीता से ही हम अपनी किसी भी समस्याओं का समाधान पा सकते हैं।हमने ऋषि, मुनि, आचार्यों, गुरुओं, वृद्धों, माताओं का अत्यधिक आदर किया, क्योंकि उन्होंने हमारी चेतना को जगा कर उच्च बनाया, सत्यनिष्ठ, चिन्तनशील और कर्मठ बनाया। उन्होंने हमें स्वयं से बांध कर नहीं रखा। उन्होंने अपने आचरण द्वारा हमें दिशा निर्देश दिए। वो हमारे शिष्यत्व से बड़े नहीं माने गए, वो हमसे मुक्त थे और हमें स्वयं से मुक्त रखा। श्रद्धा और कृतज्ञता, उनके कर्मों के द्वारा हममें सहज ही उत्पन्न होती थी।
भारत के गौरव को कैसे लौटाया जा सकता है?
हमारे यहॉं श्रीकृष्ण की परम्परा है – वो कहते हैं ”उद्धरेदात्मनात्मानंÓÓ – अपना उद्धार स्वयं करो। जो तुमने पूछा – मैंने पूरा कहा – अब तुम्हें, जो ठीक समझ पड़े – करों, कोई भी बंधन नहीं है। यह अनंत भूमि है – यहां उत्तर स्वयं खोजने है – कर्म स्वयं करने हैं। ज्ञान की विज्ञान का भंडार है हमारे पास,। हाथ पर हाथ धर कर केवल कृपा नहीं चाहते हम। हम अमृत आत्मा की संतान हैं। आइये – मिलकर उस ज्ञान-विज्ञान से अपनी समस्याओं के समाधान निकालें।