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बोर्ड परीक्षाओं का आयोजन बच्चों के साथ साथ राज्य की जनता के स्वास्थ्य को खतरे में डालने वाला 

बीकानेर। आगामी 17 से 30 जून तक राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, अजमेर की शेष परीक्षाओं के आयोजन की घोषणा के साथ ही राज्य के स्टूडेंट्स, टीचर्स और अभिभावक पशोपेश में पड़ गए हैं। विशेषकर कक्षा दसवीं के विद्यार्थियों में अत्यधिक चिंता दिखाई दे रही है। क्योंकि लॉकडाउन की लगभग ढाई महीने की अवधि के दौरान स्टूडेंट्स इस असमंजस में रहे कि शेष परीक्षाएं होगी या नहीं होगी। इस असमंजस की स्थिति ने बच्चों को लापरवाह बना दिया और इसी कारण उनकी पढ़ाई की निरंतरता टूट गई। जिसका सीधा सीधा  प्रभाव उनके परीक्षा परिणाम पर पड़ेगा।

बच्चों के साथ साथ उनके अभिभावकों का मन भयग्रस्त है कि उनकी परीक्षाएं कैसे होगी। प्राईवेट एज्यूकेशनल इंस्टीट्यूट्स प्रोसपैरिटी एलायंस (पैपा) के प्रदेश समन्वयक गिरिराज खैरीवाल ने इस संबंध में राज्य के मुख्यमंत्री को ज्ञापन प्रेषित कर बताया है कि जब राज्य में कोरोना संक्रमितों की संख्या 150 भी नहीं थी तो सरकार ने सभी परीक्षाओं को स्थगित कर दिया था लेकिन अब राज्य में कुल संक्रमितों की संख्या 10,000 के करीब है और इनमें से तकरीबन 4000 एक्टिव केस है और रोजाना लगभग तीन सौ केस बढ़ रहे हैं तो सरकार परीक्षा लेने जा रही है। ये कदापि न्यायसंगत नहीं है अपितु ऐसे हालातों में परीक्षाएं करवाने की घोषणा करना बच्चों के स्वास्थ्य  सम्बंधी अधिकार का सरासर हनन है।

सरकार का यह कदम राज्य के बच्चों के साथ साथ पूरी जनता के स्वास्थ्य को खतरे में डालने वाला है। खैरीवाल ने सरकार और बोर्ड के अधिकारियों से सवाल किया है कि कंटेनमेंट क्षेत्रों में जीरो मोबिलिटी रहती है तो इन क्षेत्रों में रहने वाले स्टूडेंट्स के लिए घर से बाहर निकलना ही बड़ा मुश्किल तो है ही, चुनौती परक भी है। जिस परिवार में यदि कोई कोरोना संक्रमित है, तो ऐसे परिवार के बच्चों को परीक्षा केंद्र पर जाना कैसे संभव होगा।

यदि ऐसे किसी परिवार का स्टूडेंट कोरोना संक्रमित हुआ तो इस स्टूडेंट के कारण संक्रमण शीघ्रता से फैलने का खतरा रहेगा। खैरीवाल ने सरकार व बोर्ड को सुझाव दिया है कि कक्षा 10 और 12 के सभी स्टूडेंट्स को अस्थाई रूप से अगली कक्षा में प्रमोट कर दिया जाए और जब स्थितियां सामान्य होने लगे तो परीक्षाएं लेकर उन्हें उनके सही परिणाम के मुताबिक उत्तीर्ण या अनुत्तीर्ण किया जा सकता है। ज्ञापन में खैरीवाल ने सुझाव दिया है कि यदि परीक्षाएं लेना इतना ही अनिवार्य है तो स्टूडेंट्स को डाऊट क्लियरेंस के लिए स्कूल जाने की छूट तुरंत रूप से दी जाए।

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