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लखनऊ। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गुरुवार को विधानसभा में बड़ा ऐलान करते हुए कहा कि सूबे के अति दलित और अति पिछड़े लोगों को आरक्षण का लाभ दिया जाएगा। उन्होंने इसके लिए एक कमेटी भी गठित करने की घोषणा की।
विधानसभा में बजट पर चर्चा के दौरान मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि आजादी के बाद से जिन्हें वंचित किया गया है। समाज की मुख्यधारा से नहीं जोड़ा गया। साथ ही आरक्षण का सही लाभ नहीं दिया गया। प्रदेश की भाजपा सरकार अब उस हर दलित और वंचित को सम्मानित करेगी। दरअसल, गोरखपुर और फूलपुर के उपचुनाव में भाजपा की करारी हार और सपा-बसपा के बीच बढ़ती दोस्ती को सियासी मात देने के लिए ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गुरुवार को अति दलित और अति पिछड़ा का मास्टर कार्ड खेला है। विधानसभा में उन्होंने जोर देकर कहा कि जरूरत पड़ने पर अति दलित एवं अति पिछड़ों को आरक्षण देने पर विचार किया जा सकता है।
वर्ष 2019 के चुनाव को लेकर सियासी हलके में योगी की यह बड़ी चाल मानी जा रही है। बिहार में नीतीश कुमार ने भी महादलित कार्ड खेला था और उन्हें इसका फायदा भी मिला था। उत्तर प्रदेश में भी इसके पूर्व राजनाथ सिंह ने भी ऐसा ही किया था। राजनाथ ने अपने शासन काल में अति दलितों और अति पिछड़ों को आरक्षण दिया था। हालांकि, बाद में मुलायम सिंह यादव और मायावती के समय यह व्यवस्था खत्म कर दी गयी थी। अब मुख्यमंत्री योगी ने एक बार फिर इसकी घोषणा कर सपा और बसपा के वोट गणित को बिगाड़ने की तैयारी कर दी है।
वैसे भाजपा शुरू से ही इस तर्क की हिमायती रही है कि आरक्षण का लाभ सिर्फ कुछ विशेष जातियों जैसे दलितों में जाटों और पिछड़ों में यादवों तक ही सीमित होकर रह गया है, इसलिए आरक्षण का लाभ सभी जातियों में उनकी आबादी के अनुसार बंटना चाहिए। ऐसे में यदि मुख्यमंत्री योगी की घोषणा जमीनी स्तर पर उतरती है तो दलितों को मिल रहे 21 प्रतिशत आरक्षण को दलितों की सभी जातियों में और पिछड़ों के 27 फीसदी आरक्षण को प्रदेश की सभी पिछड़ी जातियों में बांटा जाएगा। इस तरह योगी का यह आरक्षण कार्ड लोकसभा चुनाव में सपा और बसपा के गठबंधन के लिए बड़ी चुनौती साबित होगा। साथ ही भाजपा दलितों और पिछड़ों के वोट बैंक में सेंधमारी करने में सफल हो सकती है। 

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