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नए साल की कड़कड़ाती ठंड ने पूरे उत्तर भारत को मुश्किलों में डाल दिया था. ठंड को देख उत्तर भारत के लोग मकर संक्रांति का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे, क्योंकि अक्सर देखा जाता है कि मकर संक्रांति के बाद ठंड कम हो जाती है. लेकिन इस साल मकर संक्रांति के बाद भी तापमान में बढ़ोत्तरी नहीं होने जा रही.

ला-नीना होगा अपने तेज गति में

अमेरिका की क्लाइमेंट प्रिडिक्शन (भविष्यवाणी) सेंटर की एक रिपोर्ट के अनुसार, जनवरी से मार्च तक ला-नीना (मध्य और पूर्वी प्रशांत महासागर में ऐसा समय जब व्यवसायिक दृष्टि से उपयोगी गति की हवाएँ और असामान्य रूप से समुद्री सतही जल का तापमान कम होता है) अपनी तेज गति में होगा. जिस वजह से महासागर का तापमान ठंडा रहेगा. पूरे विश्व में इसका असर होगा. इसका असर भारत पर भी पड़ेगा और कड़ाके की ठंड रहेगी.

जून में हो सकती है बेमौसम बरसात

आपको बता दें कि इस रिपोर्ट में ला नीना के जून तक सक्रिय रहने की संभावना जताई जा रही है, जिससे इसका असर गर्मी के मौसम में भी दिखेगा और बेमौसम बरसात भी देखने को मिल सकती है, जिससे लोगों की दिक्कतों में इजाफा हो सकता है.

एग्रो मेट्रोलॉजिस्ट डॉ. रामचंद्र साबले का कहना है कि उत्तर भारत में कड़ाके की ठंड की संभावना ज्यादा है. औरंगाबाद के एमजीएम स्पेस रिसर्च सेंटर के डायरेक्टर श्रीनिवास औंधकर के अनुसार उत्तर और मध्य भारत में ज्यादा ठंड रहने से खेती, बिजनेस पर बड़ा असर झेलना पड़ेगा.

 

आपको बता दें कि शीत लहर के कारण खेती को नुकसान होता है. अगर फरवरी में भी तापमान कम रहा तो गेहूं की फसल में दाना भरने की प्रक्रिया पर असर होगा. हालांकि सब्जी की फसल पर पानी देने से ठंड और कोहरे के असर को कम किया जा सकता है, लेकिन ज्यादा ठंड पड़ती रही तो नुकसान उठाना पड़ सकता है. साभार : आजतक

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