जयपुर hellobikaner.in प्रदेश में छबड़ा परियोजना की 250 मेगावाट की प्रथम इकाई एवं 660 मेगावाट की पांचवी इकाई से विद्युत उत्पादन प्रारंभ किया जा चुका है। इसके साथ ही कोयले की आपूर्ति सुनिश्चित करते हुए कालीसिंध परियोजना की 600 मेगावॉट की एक इकाई से भी विद्युत उत्पादन रविवार को सुचारू रूप से प्रारम्भ हो चुका है।
यह जानकारी देते हुए ऊर्जा मंत्री डॉ. बी. डी. कल्ला ने बताया कि की छबड़ा की दोनों इकाईयों में तकनीकी कारणों से उत्पादन बंद हुआ था, अब इन तकनीकी खामियों को दुरूस्त कर दिया गया है। इसके साथ ही कोटा एवं सूरतगढ़ की विद्युत उत्पादन इकाईयों जो कि कोयला आपूर्ति के लिए कोल इंडिया पर निर्भर हैं, के लिए कोयले की पर्याप्त आपूर्ति की दिशा में भी केन्द्र सरकार के स्तर पर फालोअप करते हुए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं।
डॉ. कल्ला ने बताया कि प्रदेश में वर्तमान में बिजली की कमी के कारण उत्पन्न स्थितियां मुख्यतया गत सरकार के विद्युत कुप्रबंधन और उस समय ऊर्जा विभाग की उदासीन कार्यप्रणाली का नतीजा है। उन्होंने बताया कि पूर्ववर्ती सरकार के समय में ऊर्जा विभाग द्वारा प्रदेश में निर्माणाधीन छबड़ा एवं सूरतगढ़ सुपरक्रिटीकल (2 गुना 660 मेगावॉट प्रत्येक) की दो महत्वपूर्ण इकाईयों की समयबद्ध कमीशनिंग पर ध्यान नहीं दिया गया, इसकी वजह से इन इकाईयों के काम में अनावश्यक देरी हुई। उन्होंने बताया कि छबड़ा एवं सूरतगढ़ की उक्त दो इकाईयों से वर्ष 2016 में विद्युत उत्पादन प्रारंभ होना था, जो धीमी गति के कारण समय पर आरम्भ नहीं हो सका। केवल मात्र छबड़ा स्थित 660 मेगावॉट की एक इकाई का कार्य ही उस समय वर्ष 2018 में जाकर शुरू हो सका।
ऊर्जा मंत्री ने बताया कि पूर्ववर्ती सरकार के कार्यकाल में प्रदेश में 2 गुना 660 की सुपर क्रिटीकल की दोनों परियोजनाओं कुल 2640 मेगावाट पर कोई ध्यान नहीं दिया। इन परियोजनाओं की प्रशासनिक एवं वित्तीय स्वीकृति भी हमारी सरकार के पिछले कार्यकाल (वर्ष 2008 से 2013) में जारी की गई थी। गत सरकार की इन बड़ी परियोजनाओं के प्रति उदासीनता के कारण राज्य में की विद्युत उपलब्धता और आत्मनिर्भर होने में विपरीत असर पड़ा है।
डॉ. कल्ला ने बताया कि वर्तमान सरकार के गठन के बाद वर्ष 2019 एवं 2020 में राज्य के ऊर्जा विभाग के अथक प्रयासों से छबड़ा एवं सूरतगढ़ स्थित 660.660 मेगावाट की इकाइयों से विद्युत उत्पादन प्रारंभ किया गया। इसके साथ ही सूरतगढ़ सुपरक्रिटीकल की 660 मेगावाट की आठवीं इकाई की कमीशनिंग की गतिविधियां भी तेजी से चल रही हैए इससे शीघ्र ही वाणिज्यिक उत्पादन शुरू होगा। यह भी मौजूदा सरकार की प्रदेश में विद्युत उत्पादन को बढ़ाने के लिए सतत सक्रियता और समयबद्ध प्रयासों से ही संभव होने जा रहा है।
ऊर्जा मंत्री ने बताया कि वर्तमान में विद्युत उत्पादन निगम का वितरण निगमों पर काफी बकाया है जो कि पूर्ववर्ती सरकार के समय वर्ष 2014-15 से इस ओर ध्यान नहीं देने का परिणाम है। गत सरकार के कार्यकाल में वितरण निगमों द्वारा उत्पादन निगम को भुगतान नहीं करने के एवज में उत्पादन निगम को ऋण लेना पड़ा, जिससे उत्पादन निगम की आज यह माली हालत हुई है। उन्होंने बताया कि पिछली सरकार के समय डिस्कॉम्स द्वारा उत्पादन निगम से बिजली ली गईए मगर उसका समय पर भुगतान नहीं किया गया। उत्पादन निगम के गत सरकार के समय के 20 हजार करोड़ रुपये के बिल भुगतान से शेष थे, जिसके कारण उत्पादन निगम को उस समय (पिछली सरकार के कार्यकाल में) लोन लेना पड़ा था। उस लोन का ब्याज अब उत्पादन निगम को काफी भारी पड़ रहा है। इसके साथ ही गत सरकार वितरण निगमों पर 53000 करोड़ का उधार का भार एवं उत्पादन निगम पर 45000 करोड़ के ऋण का बोझ छोड़कर गयी थी। इस प्रकार गत सरकार ने ऊर्जा क्षेत्र की कम्पनियों पर 1 लाख 20 हज़ार करोड़ का भार डाल करके वित्तीय कुप्रबन्धन को चरितार्थ किया।
वर्तमान सरकार के प्रयासों से ऊर्जा विभाग ने 1430 मेगावॉट की सौर ऊर्जा रू 2.50 प्रति यूनिट तथा 1070 मेगावॉट की सौर ऊर्जा रू 2.00 प्रति यूनिट एवं 1200 मेगावॉट पवन ऊर्जा रू.2.77 प्रति यूनिट में अनुबन्ध किया गया है। इसके अतिरिक्त 1785 मेगावॉट सौर ऊर्जा की निविदा एस.ई.सी.आई के माध्यम से प्रक्रियाधीन है तथा आगामी 12 से 18 माह में विद्युत आपूर्ति प्राप्त हो जावेगी जिससे आगे आने वाले दिनों में उपभोक्ताओं को उचित दर विद्युत आपूर्ति में सहायता होगी।
डॉ. कल्ला ने बताया कि वर्तमान सरकार के कार्यकाल में राजस्थान उत्पादन निगम की माली हालत को सुधारने के लिए भी युद्ध स्तर पर व्यापक प्रयास किए जा रहे हैं। डिस्कॉम्स द्वारा भी सभी उत्पादन इकाईयों को समयबद्ध रूप से भुगतान का प्रयास किया जा रहा है एवं कोयला आपूर्तिकर्ताओं को भुगतान कर विद्युत उत्पादन इकाईयों के लिए कोयले की सुचारू सप्लाई सुनिश्चित की गई है।