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जोधपुर hellobikaner.in जेएनवीयू के राजस्थानी विभाग द्वारा ऑनलाईन फेसबुक लाइव पेज पर गुमेज व्याख्यानमाला के तहत महाकवि पृथ्वीराज राठौड के व्यक्तित्व और कृतित्व पर साहित्यवेता डॉ लक्ष्मीकान्त व्यास ने ने कहा कि पृथ्वीराज राठौड़ वीरता और भक्ति के पर्याय थे।

राजस्थानी विभागाध्यक्ष एवं गुमेज व्याख्यानमाला की संयोजक डॉ. मीनाक्षी बोराणा ने बताया कि डॉ. लक्ष्मीकान्त व्यास ने वर्च्युअल बोलते हुए कहा कि राजस्थानी साहित्य के भक्ति काव्य परम्परा में भक्ति की सगुण और निर्गुण धाराऐं मिलती है और सगुण भक्ति की बात करते है तो इसमें शैव,वैष्णव और शाक्य परम्परा रही है। वैष्णव भक्ति की भी दो शाखाऐं है जिसमें रामाश्रय शाखा और कृष्णाश्रय शाखा रही है। भक्ति के जितने प्रकार है, उन सभी में इस तरह भक्ति की रचनाऐं एवं भक्त सामने आते है।

डॉ व्यास ने बताया कि सगुण काव्य परम्परा में वेलि क्रिसन रूकमणी की और वेलिकार पृथ्वीराज राठौड़ का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। राजस्थानी साहित्य के काल परम्परा की दृष्टि से देखे तो इनकी रचनाओं में भक्तिकाल का उतरार्द्ध एवं रीतिकाल का ऊषाकाल सामने आता है। पृथ्वीराज राठौड़ क्षत्रिय कुल परम्परा में राठौड़वंश के बीकानेर राज्य के संस्थापक बीकाजी की चौथी पीढ़ी के राव कल्याणमल के कुंवर थे। काव्य परम्परा मे आपको पीथळ नाम से भी जाना जाता है। आपका जन्म संवत् 1606 में हुआ था। आप गागरोनगढ के शासक रहे है। ऐसा माना जाता है कि वेलि की रचना भी आपने गागरोन गढ में ही की।

डॉ व्यास ने कहा कि पृथ्वीराज राठौड अकबर के नवरत्न में से एक रत्न थे और अकबर के घनिष्ठ मित्र भी थे। आपके व्यक्तित्व की एक बडी खुबी यह थी कि आप निर्भीक एंव सच्चे वक्ता थे। अकबर के दरबार में उसकी शाही सेना के सेनानायक रहते हुए भी आपके मन में जातिय गौरव और मातृ भूमि के लिए जो लगाव था उसे कभी नही भुले । आप स्वतंत्रता के पुजारी थे, आपने अपने काव्य में वीर नायकों की प्रशंसा की है। उन्होंने महाराण प्रताप और अकबर के संघर्ष को नजदीक से देखा और महाराणा प्रताप के शौर्य, स्वाभिमान, त्याग, निष्ठा, मातृ भूमि के प्रति प्रेम के गीत गाते रहे है और अकबर के सामने झुकने वाले राजाओं को फटकारते भी रहे है।

डॉ व्यास ने बताया कि वेलिक्रिसन रूकमणी की के अलावा पृथ्वीराज राठौड़ ने और भी कई रचनाऐं लिखी है। जिसमें दशम भागवत के दौहे, ठाकुर जी के दौहे, गंगा लेहरी, महाराणा प्रताप के दौहे और कुछ स्फुट गीतो की रचनाऐं भी की है। आपकी सजृन यात्रा बहुत ही महत्वपूर्ण एवं अमूल्य है। वैली की रचना के बाद आपकी प्रतिष्ठा एवं यशगान चारों तरफ होने लगा। बादशाही सेना के सेनानायक रहते हुए राधा कृष्ण के प्रति प्रेम,भक्ति व श्रृंगार ग्रन्थ की रचना करना आश्चर्य की बात थी। डॉ लक्ष्मीकान्त ने इनकी रचनाओं के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उन्होने वेलि में आये छंद, अलंकार, रसो आदि की भी विवेचना उदाहरण देकर बतायी । वेलि की भाषा राजस्थानी साहित्य के मध्यकालीन काव्य की भाषा है। डिंगल शैली का प्रभाव, संस्कृत, देशी भाषाओं के शब्दों का प्रयोग भाषा को सौंदर्य प्रदान करता है।

आपने कहा कि पृथ्वीराज राठौड़ कई विषयों के ज्ञाता रहे है। ज्योतिष, वैधक, योग, पुराण, राजनीति, कर्मकाण्ड, युद्धकला, काव्यकला, भाषाशास्त्र के पंडित के रूप में देखा जा सकता है। वह एक वीर सेनानायक थे परन्तु उतने ही विन्रम भी थे। आपके के लिए कहा जाता है कि एक हाथ में कलम दुसरे में तलवार और हदृय में हरि विराजमान थे। जिनका स्मरण लगातार करते रहे। वह एक सच्चे वीर, साहित्यकार और उपासक थे। अपने जीवन के अन्तिम पडाव में आपने मथुरा में निवास किया और मोक्ष प्राप्त किया।

इस ऑनलाईन व्याख्यानमाला में देश भर से बड़ी संख्या में साहित्यकार, विद्ववान और शोधार्थी, विद्यार्थी जुडे । प्रमुख रूप से डॉ मधु आचार्य, डॉ गजेसिंह राजपुरोहित, डॉ धनंजया अमरावत,भंवरलाल सुथार, गौरी शंकर प्रजापत,सीमा राठौड़, गिरधरदान रतनु दासौड़ी, परसाराम पुरोहित, राकेश कल्ला,फतेह कृष्ण व्यास, राकेश कुमार सारण, छगनदान चारण, कमला जोशी, डॉ रणजीत सिंह चौहान, हर्षित भाटी, कमल बोराणा आदि।

(डॉ. मीनाक्षी बोराणा)
अध्यक्ष, राजस्थानी विभाग
संयोजक, गुमेज व्याख्यानमाला
जय नारायण व्यासविश्वविद्यालय,जोधपुर

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